India Russia oil imports: अमेरिका और यूरोप द्वारा रूस पर लगाए गए नए प्रतिबंधों के बाद भारत अपने सबसे बड़े कच्चे तेल आपूर्तिकर्ता रूस से आयात में भारी कमी कर सकता है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के तेल रिफाइनर अब अपनी सप्लाई योजनाओं की समीक्षा कर रहे हैं ताकि वे पश्चिमी प्रतिबंधों का उल्लंघन न करें.
रिपोर्ट में बताया गया है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, जो देश की सबसे बड़ी निजी तेल कंपनी है, रूस से अपने कच्चे तेल के आयात में “तेज कटौती” करने या उसे पूरी तरह बंद करने की योजना बना रही है. वहीं, सरकारी तेल कंपनियां भी नए प्रतिबंधों को देखते हुए अपने आयात स्रोतों में बदलाव करने पर विचार कर रही हैं.
अमेरिका और यूरोप के नए प्रतिबंधों का प्रभाव
हाल ही में अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस की प्रमुख ऊर्जा कंपनियों रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil) पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. यह कदम यूक्रेन में जारी युद्ध को लेकर रूस पर दबाव बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है. ब्रिटेन ने भी इन दोनों कंपनियों पर बीते सप्ताह प्रतिबंध लगाए थे, जबकि यूरोपीय संघ ने अपनी 19वीं सैंक्शन सूची में रूस से एलएनजी (Liquefied Natural Gas) आयात पर रोक की घोषणा की है.
इन नए कदमों से वैश्विक तेल बाजार में हलचल मच गई है. गुरुवार को कच्चे तेल की कीमतों में करीब 3% की तेजी दर्ज की गई. ब्रेंट क्रूड के भाव $1.94 (3.1%) बढ़कर $64.53 प्रति बैरल पहुंच गए, जबकि वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) तेल $1.89 (3.2%) चढ़कर $60.39 प्रति बैरल पर पहुंच गया.
भारतीय रिफाइनर बदल रहे सप्लाई चेन
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की सरकारी तेल कंपनियां यह सुनिश्चित करने में जुटी हैं कि उनके किसी भी तेल कार्गो का सीधा स्रोत रोसनेफ्ट या लुकोइल न हो. वहीं रिलायंस इंडस्ट्रीज, जो 2022 के बाद से रूस के सबसे बड़े ग्राहकों में से एक बन गई थी, अब अपने खरीद पैटर्न में बड़ा बदलाव करने जा रही है.
सूत्रों के मुताबिक, रिलायंस सरकार की नीति दिशा के अनुरूप रूस से कच्चे तेल की खरीद में “काफी कमी” लाने की तैयारी में है. यह निर्णय ऐसे समय आया है जब अमेरिका लगातार भारत पर रूस से आयात घटाने का दबाव बना रहा है.
भारत ने 2022 के बाद रूस से भारी मात्रा में तेल खरीदा था, क्योंकि उस समय पश्चिमी देशों ने रूसी तेल से दूरी बना ली थी और भारत को सस्ता कच्चा तेल उपलब्ध हो गया था. लेकिन अब बढ़ते प्रतिबंधों और पश्चिमी दबाव के कारण भारत को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं जैसे मध्य पूर्व और अफ्रीका के देशों की ओर रुख करना पड़ सकता है.
विशेषज्ञों की राय और बाजार की स्थिति
फिलिप नोवा की वरिष्ठ विश्लेषक प्रियंका सचदेवा ने कहा, “अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा लगाए गए नए प्रतिबंध रूस की सबसे बड़ी तेल कंपनियों को निशाना बना रहे हैं. इससे क्रेमलिन की युद्ध-राजस्व कमाने की क्षमता पर चोट करने की कोशिश की जा रही है. अगर भारत अमेरिकी दबाव में रूसी तेल खरीद में कटौती करता है, तो एशियाई बाजार में अमेरिकी कच्चे तेल की मांग बढ़ सकती है.”
हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि तेल की कीमतों में आई तेजी अस्थायी है. रिस्टाड एनर्जी के ग्लोबल मार्केट एनालिसिस डायरेक्टर क्लॉडियो गालिंबर्टी ने कहा, “ये नई पाबंदियां निश्चित रूप से अमेरिका और रूस के बीच तनाव बढ़ा रही हैं, लेकिन मैं इसे तेल बाजार में स्थायी बदलाव नहीं मानता. पहले भी कई बार रूस पर लगे प्रतिबंधों का उत्पादन और राजस्व पर सीमित असर हुआ है.”
उन्होंने आगे कहा कि पिछले तीन वर्षों में पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस ने अपने तेल उत्पादन को बड़े पैमाने पर बरकरार रखा है. भारत और चीन जैसे देश अब भी रूसी तेल खरीदना जारी रखे हुए हैं.
क्या है आगे की संभावनाएं
विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले महीनों में तेल बाजार की दिशा तीन प्रमुख कारकों पर निर्भर करेगी. ओपेक+ (OPEC+) देशों की उत्पादन नीति, चीन की तेल भंडारण रणनीति, और यूक्रेन व मध्य पूर्व में जारी संघर्ष की स्थिति. फिलहाल भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती ऊर्जा आपूर्ति की निरंतरता बनाए रखना और पश्चिमी देशों के साथ संतुलन साधना होगी.