नई दिल्ली में बुधवार से शुरू हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में व्यापारिक जगत के लिए राहत भरे कई अहम फैसले लिए गए. काउंसिल ने जहां छोटे और मध्यम उद्यमों को तेजी से जीएसटी रजिस्ट्रेशन की सुविधा देने का ऐलान किया, वहीं टैक्स स्लैब को घटाकर उपभोक्ताओं और उद्योगों दोनों को लाभ पहुंचाने की तैयारी की है. हालांकि, इस कदम से सरकार को करीब 50,000 करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान की आशंका भी जताई गई है.
काउंसिल ने फैसला लिया है कि एमएसएमई और स्टार्टअप्स के लिए जीएसटी रजिस्ट्रेशन का समय अब 30 दिन से घटाकर सिर्फ 3 दिन कर दिया जाएगा. इससे नए व्यवसायों को बाजार में तेजी से उतरने का मौका मिलेगा. वहीं, निर्यातकों के लिए ऑटोमेटेड रिफंड प्रणाली भी मंजूर की गई है, जिससे उनका पैसा अटकने का खतरा कम होगा और कॉम्पटीशन बढ़ेगा.
काउंसिल की बैठक का मुख्य एजेंडा टैक्स स्लैब का पुनर्गठन रहा. वर्तमान में 5%, 12%, 18% और 28% की चार दरें लागू हैं. सरकार का प्रस्ताव है कि 28% स्लैब में आने वाले 90% सामानों को 18% वाले स्लैब में शिफ्ट किया जाए. इसी तरह, 12% टैक्स वाले कई सामानों को 5% श्रेणी में लाने की योजना है. इसका सीधा असर उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों पर पड़ेगा और घरेलू खपत बढ़ेगी.
स्रोतों के मुताबिक, इस बदलाव से आठ प्रमुख सेक्टरों टेक्सटाइल, उर्वरक, नवीकरणीय ऊर्जा, ऑटोमोबाइल, हस्तशिल्प, कृषि, स्वास्थ्य और इंश्योरेंस को सबसे ज्यादा फायदा होगा. खासकर, स्वास्थ्य और जीवन बीमा प्रीमियम जैसे सेवाओं को जीएसटी दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव है, जिससे आम जनता को सीधी राहत मिलेगी. हालांकि, तंबाकू, लग्जरी कार और शराब जैसी वस्तुओं पर 'सिन गुड्स' टैग बना रहेगा और उन पर हेल्थ सेस या ग्रीन एनर्जी सेस लगाने की तैयारी है.
हालांकि इस प्रस्तावित टैक्स कटौती से होने वाले अनुमानित 50,000 करोड़ रुपये के नुकसान पर कई गैर-भाजपा शासित राज्यों ने चिंता जताई है. तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य इस मुद्दे पर कड़ा विरोध दर्ज कर सकते हैं. उनका कहना है कि राजस्व की भरपाई कैसे होगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है. इसके बावजूद, केंद्र सरकार का मानना है कि बढ़ी हुई खपत और उत्पादन से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और नुकसान की भरपाई हो जाएगी.