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भारत में वित्तीय वर्ष अप्रैल से ही क्यों होता है शुरू? जानिए इसका ऐतिहासिक और आर्थिक कारण

भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलता है. इसकी जड़ें ब्रिटिश शासन, कृषि चक्र और बजट व्यवस्था से जुड़ी हैं, जिससे आर्थिक योजना, कर प्रणाली और सरकारी नीतियों का संचालन आसान होता है.

Kuldeep Sharma
Edited By: Kuldeep Sharma
भारत में वित्तीय वर्ष अप्रैल से ही क्यों होता है शुरू? जानिए इसका ऐतिहासिक और आर्थिक कारण
Courtesy: social media

भारत में हर साल 1 अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष शुरू होता है और 31 मार्च को समाप्त होता है. आम लोगों के लिए यह तारीखें अक्सर टैक्स, सैलरी स्लिप या निवेश से जुड़ी होती हैं, लेकिन इसके पीछे एक लंबा ऐतिहासिक और व्यावहारिक कारण छिपा है. 

यह व्यवस्था केवल सरकारी कामकाज तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापार, उद्योग, बैंकिंग और शेयर बाजार तक को प्रभावित करती है. सवाल यह है कि भारत में वित्तीय वर्ष जनवरी से दिसंबर के बजाय अप्रैल से मार्च तक क्यों चलता है? इसकी वजह इतिहास, खेती और बजट प्रणाली से जुड़ी है.

वित्तीय वर्ष क्या होता है और क्यों जरूरी है

वित्तीय वर्ष वह अवधि होती है जिसमें सरकार, कंपनियां और कारोबारी अपनी आय, खर्च और मुनाफे का हिसाब तैयार करते हैं. इसी आधार पर टैक्स तय किया जाता है और आयकर रिटर्न भरी जाती है. एक तय समय-सीमा होने से पूरे देश में आर्थिक आंकड़ों का मूल्यांकन एक समान तरीके से हो पाता है. इससे नीतियां बनाना, खर्च का आकलन करना और भविष्य की योजनाएं तय करना आसान हो जाता है.

भारत में वित्तीय वर्ष की शुरुआत कब हुई

भारत में अप्रैल से मार्च तक वित्तीय वर्ष की व्यवस्था ब्रिटिश शासन के दौरान लागू हुई. वर्ष 1867 में अंग्रेजी सरकार ने इसे औपचारिक रूप दिया, ताकि भारत की आय और खर्च का लेखा-जोखा ब्रिटेन की प्रशासनिक जरूरतों के अनुसार किया जा सके. आजादी के बाद भी इस प्रणाली को बदला नहीं गया, क्योंकि यह भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल साबित हुई. समय के साथ यह व्यवस्था देश की आर्थिक रीढ़ बन गई.

अप्रैल से मार्च का चुनाव क्यों किया गया

भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है. फरवरी-मार्च में रबी फसलों की कटाई होती है और किसानों की आमदनी का स्पष्ट अंदाजा मिलता है. मार्च तक सरकार को टैक्स और राजस्व की सही तस्वीर मिल जाती है. अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष शुरू होने पर सरकार नई योजनाओं और नीतियों की शुरुआत आसानी से कर सकती है. इससे खेती और सरकारी आय का तालमेल बना रहता है.

त्योहारी सीजन और व्यापारिक संतुलन

भारत में अक्टूबर से दिसंबर के बीच त्योहारों का मौसम रहता है, जब बाजार में सबसे ज्यादा खरीदारी होती है. अगर वित्तीय वर्ष दिसंबर में खत्म होता, तो कारोबारियों के लिए सालाना लेखा-जोखा बनाना मुश्किल हो जाता. मार्च में वित्तीय वर्ष खत्म होने से व्यापारियों को पूरे त्योहारी सीजन के बाद अपना हिसाब-किताब व्यवस्थित करने का समय मिल जाता है.

बजट और आर्थिक नीतियों से सीधा संबंध

केंद्रीय बजट हर साल 1 फरवरी को पेश किया जाता है. बजट के बाद नई कर दरें, योजनाएं और नियम लागू करने में कुछ समय लगता है. अप्रैल से वित्तीय वर्ष शुरू होने पर सरकार के पास बजट को जमीन पर उतारने के लिए पर्याप्त समय होता है. इससे सरकारी विभागों, कंपनियों और निवेशकों को नई नीतियों के अनुसार खुद को ढालने में आसानी मिलती है.