Valmiki Jayanti 2025: हर साल क्यों मनाई जाती है महर्षि वाल्मीकी जयंती? जानें तिथि, महत्व और पूर्णिमा समय

Valmiki Jayanti 2025:  2025 में महर्षि वाल्मीकी जयंती 7 अक्टूबर, मंगलवार को मनाई जाएगी. यह दिन आदिकवि वाल्मीकी की जयंती है, जिन्होंने 'रामायण' जैसी अमूल्य रचना दी. यह अश्विन पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो 6 अक्टूबर को दोपहर 12:23 बजे से शुरू होकर 7 अक्टूबर को 9:16 बजे तक समाप्त होगी.

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Princy Sharma

Valmiki Jayanti 2025:  2025 में महर्षि वाल्मीकी जयंती 7 अक्टूबर, मंगलवार को मनाई जाएगी. यह दिन भारतीय साहित्य के आदिकवि, महर्षि वाल्मीकी की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिनकी रचनाओं ने भारतीय संस्कृति और साहित्य को अमूल्य धरोहर दी है. वाल्मीकी जी ने महाकाव्य 'रामायण' की रचना की थी, जो 24,000 श्लोकों में भगवान राम के जीवन और उनके संघर्षों की कथा को बयान करती है.

इस खास दिन को हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. 6 अक्टूबर को दोपहर 12:23 बजे से पूर्णिमा तिथि शुरू होगी और 7 अक्टूबर को सुबह 9:16 बजे तक यह समाप्त होगी. इस समय को विशेष पूजा, अनुष्ठान और प्रार्थनाओं के लिए सबसे शुभ माना जाता है.

कौन थे वाल्मीकी जी?

वाल्मीकी जी का जीवन अत्यधिक प्रेरणादायक है. वे एक समय डाकू थे, लेकिन फिर उन्होंने संपूर्ण जीवन में सत्य, अहिंसा और धार्मिकता का पालन करते हुए संतों का मार्ग अपनाया. उनका सबसे महान योगदान 'रामायण' के रूप में सामने आया, जिसमें उन्होंने भगवान राम के जीवन को न केवल कथा के रूप में प्रस्तुत किया, बल्कि मानवता के उच्चतम आदर्शों को भी उजागर किया.

लव और कुश को दी रामायण शिक्षा

रामायण के सात कांडों में वाल्मीकी जी ने हर एक अध्याय में नीति, भक्ति और धर्म का संदेश दिया. खासतौर पर इस महाकाव्य में देवी सीता और उनके दो पुत्रों, लव और कुश की कथा, वाल्मीकी जी के आश्रम में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचती है. कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकी ने लव और कुश को रामायण का शिक्षण दिया था, जो बाद में भगवान राम के दरबार में पहुंचे.

महर्षि वाल्मीकी जयंती का त्योहार

महर्षि वाल्मीकी जयंती के अवसर पर भारत के विभिन्न मंदिरों और सांस्कृतिक केंद्रों में विशेष पूजा, रामायण पाठ, और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. लोग इस दिन को महर्षि वाल्मीकी की उपासना, उनके योगदान को याद करने और उनके आदर्शों का पालन करने के रूप में मनाते हैं.

इस दिन का विशेष महत्व यह है कि यह न केवल रामायण के रचनाकार की पूजा का दिन है, बल्कि यह हमें एक सशक्त और समृद्ध जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन भी देता है, जैसा कि महर्षि वाल्मीकी ने अपनी रचनाओं में बताया है.