देश के कई हिस्सों में आज भी सुबह घर से निकलते समय सड़क किनारे नींबू-मिर्च की माला दिख जाती है. इसे किसी दुकान, वाहन या घर के बाहर लगाया जाता है. लेकिन जब यह सड़क पर गिर जाए और कोई इस पर चढ़ जाए, तो अक्सर लोग डर जाते हैं. नानी-दादी की नसीहत में यह बात आम है कि इसे लांघना नहीं चाहिए.
ज्योतिषी, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक जानकार मानते हैं कि यह डर ज्यादा अंधविश्वास से नहीं, बल्कि बचपन से मिले संस्कार और सामाजिक प्रभाव से बनता है. लोग इसे अशुभ संकेत मानकर तनाव महसूस करते हैं.
नींबू और मिर्च को तेज़ गंध, खट्टे स्वाद और तीखे प्रभाव के कारण नकारात्मक ऊर्जा काटने वाला माना गया. पुराने समय में जब रोग, नजर-दोष और अनहोनी के कारण समझ नहीं आते थे, तब इसे रक्षा प्रतीक बनाया गया. गांव-कस्बों में यह परंपरा आज भी दिखती है. लोग इसे सम्मान से देखते हैं, इसलिए इसे लांघने या कुचलने से बचते हैं. यह सामाजिक अनुशासन और आस्था का मिला-जुला रूप है.
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार जब किसी को यह बताया जाए कि एक वस्तु अशुभ है, तो दिमाग सतर्क मोड में चला जाता है. अगर कोई उस पर पैर रख दे, तो मन तुरंत किसी अनहोनी की आशंका से जुड़ाव बना लेता है. इससे बेचैनी, घबराहट और बुरा महसूस होना शुरू हो जाता है. यही कारण है कि कुछ लोग इसे आत्मा का पीछा समझ लेते हैं, जबकि यह मन में पैदा हुआ डर होता है, जो घटनाओं को अशुभ रंग दे देता है.
विज्ञान स्पष्ट मानता है कि नींबू-मिर्च एक जैविक वस्तु है, जिसमें किसी भी प्रकार की आत्मिक शक्ति को आकर्षित या सक्रिय करने का प्रमाण नहीं है. यह बुरी नजर से सुरक्षा का सांस्कृतिक प्रतीक जरूर है, लेकिन इसे कुचलने से किसी ऊर्जा या आत्मा के पीछे लगने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. दुर्घटनाएं या बुरे अनुभव इसके कारण नहीं, बल्कि संयोग और परिस्थितियों से बनते हैं. डर का संबंध वस्तु से नहीं, सोच से होता है.
विशेषज्ञों के अनुसार गीली या सड़ी नींबू-मिर्च पर पैर रखने से कोई आत्मा नहीं, लेकिन फंगल या बैक्टीरियल संक्रमण की संभावना जरूर बन सकती है, खासकर खुले घाव या त्वचा संपर्क में आने पर. यही कारण है कि साफ-सफाई और हाइजीन को प्राथमिकता देना जरूरी है. पुराने समय में संक्रमण और बीमारी का कारण समझ में नहीं आता था, इसलिए इसे अदृश्य शक्ति से जोड़ दिया गया. यह परंपरा सावधानी के भाव से शुरू हुई थी, डर के भाव से नहीं.
सांस्कृतिक जानकार मानते हैं कि परंपरा को सम्मान देना गलत नहीं, लेकिन उसे डर से जोड़ना नुकसानदेह है. अगर सड़क पर नींबू-मिर्च दिखे, तो उसे श्रद्धा से देखें, लेकिन इसे लांघने से आत्मा पीछे लग जाएगी, यह मान लेना मानसिक तनाव बढ़ाता है. जागरूकता, विज्ञान और आस्था को साथ लेकर चलना सही संतुलन है. सुरक्षा प्रतीकों का उद्देश्य मन को मजबूत बनाना था, न कि कमजोर करना.
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