Eid ul-Adha 2025: आज पूरे देश में ईद-उल-अजहा, जिसे आमतौर पर बकरीद के नाम से जाना जाता है, बड़ी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है. यह त्योहार इस्लाम धर्म में त्याग, इंसानियत और अल्लाह के प्रति पूरी वफादारी का प्रतीक माना जाता है. इस दिन को ‘Festival of Sacrifice’ यानी 'कुर्बानी का त्योहार' भी कहा जाता है, जो रमजान के 70 दिन बाद आता है.
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, बकरीद हर साल जिलहिज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाई जाती है. बकरीद का सीधा संबंध हजरत इब्राहीम और उनके बेटे हजरत इस्माईल से जुड़ी ऐतिहासिक घटना से है. कहा जाता है कि हजरत इब्राहीम अल्लाह की आज्ञा पर अपने बेटे को कुर्बान करने को तैयार हो गए थे, लेकिन ऐन वक्त पर अल्लाह ने उनकी सच्ची नीयत देखकर एक जानवर भेज दिया जिसे कुर्बान किया गया. तभी से इस दिन जानवर की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई.
बकरीद पर क्यों दी जाती है कुर्बानी?
इस दिन इस्लाम धर्म के अनुयायी बकरी, भेड़, ऊंट या बैल जैसे सेहतमंद जानवर की कुर्बानी करते हैं. यह सिर्फ धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि इंसान अल्लाह की राह में अपने सबसे प्यारे चीज को भी कुर्बान करने का हौसला रखता है. कुर्बानी का गोश्त तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाता है —
इस तरह से बकरीद का असली संदेश होता है भाईचारा, मदद और समानता
इस्लाम में कुर्बानी के लिए उसी जानवर को सही माना जाता है जो पूरी तरह स्वस्थ और बिना किसी बीमारी के हो. बीमार या कमजोर जानवर की कुर्बानी को अल्लाह कबूल नहीं करता. इसके अलावा कुर्बानी के लिए इस्तेमाल किया गया पैसा हलाल तरीके से कमाया गया होना चाहिए, तभी वह मान्य होती है.
इस दिन की शुरुआत ईद की नमाज से होती है, जो सुबह-सुबह बड़ी मस्जिदों या ईदगाहों में अदा की जाती है. लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक-दूसरे से गले मिलकर 'ईद मुबारक' कहते हैं और मिठाइयों, तोहफों का आदान-प्रदान करते हैं. गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना भी इस दिन का अहम हिस्सा है.
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलेशिया जैसे देशों में बकरीद चांद दिखने के एक दिन बाद मनाई जाती है, जबकि सऊदी अरब में यह त्योहार एक दिन पहले होता है. हालांकि नाम अलग-अलग हो सकते हैं — जैसे ईद-उल-जुहा, ईद-उल-बकरा — लेकिन भावना एक ही है: त्याग और भलाई की जीत.
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