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छठ पूजा में दो बार क्यों दिया जाता है सूर्य को अर्घ्य? जानें क्या है इसका गहरा आध्यात्मिक संदेश

छठ पूजा की सबसे खास परंपरा है सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना, जो दो बार किया जाता है - संध्या अर्घ्य और ऊषा अर्घ्य. ये दोनों अर्घ्य न केवल धार्मिक परंपरा का हिस्सा हैं, बल्कि इनका गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है. आइए जानते हैं इनके बारे में...

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Edited By: Antima Pal
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Courtesy: freepik

छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक पवित्र और आध्यात्मिक पर्व है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है. इस पर्व में सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है.

छठ पूजा की सबसे खास परंपरा है सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना, जो दो बार किया जाता है - संध्या अर्घ्य और ऊषा अर्घ्य. ये दोनों अर्घ्य न केवल धार्मिक परंपरा का हिस्सा हैं, बल्कि इनका गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है. आइए जानते हैं इनके बारे में...

संध्या अर्घ्य: डूबते सूर्य की पूजा

संध्या अर्घ्य छठ पूजा के तीसरे दिन, 27 अक्टूबर 2025 को दिया जाएगा. इस दिन व्रती डूबते हुए सूर्य (अस्ताचलगामी सूर्य) को अर्घ्य अर्पित करते हैं. डूबता सूर्य जीवन के अंत, समापन और नश्वरता का प्रतीक है. संध्या अर्घ्य के माध्यम से हम सूर्य देव को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने दिनभर हमें ऊर्जा और जीवन शक्ति प्रदान की. यह आत्मचिंतन का समय है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के कर्मों का मूल्यांकन करता है और सकारात्मक बदलाव की प्रेरणा लेता है. संध्या अर्घ्य का वैज्ञानिक महत्व भी है, क्योंकि इस समय सूर्य की किरणें शरीर के लिए लाभकारी होती हैं और मन को शांति देती हैं.

ऊषा अर्घ्य: उगते सूर्य की आराधना

चौथे दिन 28 अक्टूबर 2025 को प्रातःकाल में उदयमान सूर्य को ऊषा अर्घ्य अर्पित किया जाता है. उगता सूर्य नई शुरुआत, आशा और जीवन के आरंभ का प्रतीक है. यह अर्घ्य सूर्य देव से नई ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए दिया जाता है. ऊषा अर्घ्य के समय सूर्य की पहली किरणें शरीर में विटामिन D की पूर्ति करती हैं और मानसिक तनाव को कम करती हैं. यह समय आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जीवन में नए लक्ष्यों और संकल्पों को अपनाने की प्रेरणा देता है.

दो बार अर्घ्य क्यों?

सूर्य को दो बार अर्घ्य देने की परंपरा जीवन के चक्र को दर्शाती है. डूबता सूर्य जीवन के अंत और अनुभवों को स्वीकार करने का प्रतीक है, जबकि उगता सूर्य नई शुरुआत और आशा का संदेश देता है. यह परंपरा हमें सिखाती है कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन हर अंत के बाद एक नई शुरुआत होती है. छठ पूजा का यह अनुष्ठान न केवल सूर्य की उपासना है, बल्कि प्रकृति के साथ तालमेल और जीवन के प्रति कृतज्ञता का पाठ भी पढ़ाता है.

छठ पूजा का संध्या और ऊषा अर्घ्य केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के गहरे दर्शन को समझने का माध्यम है. यह पर्व हमें प्रकृति, सूर्य और अपने भीतर की शक्ति से जोड़ता है.