हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में चंद्र ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता. ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के समय नकारात्मक ऊर्जा चरम पर होती है, जिससे मानव जीवन और प्राकृतिक घटनाओं पर असर पड़ता है. लेकिन शास्त्रों में बताया गया है कि ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान, दान और धर्मकर्म करने से इसका दोष दूर हो जाता है और व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है.
ग्रहण समाप्त होते ही सबसे पहला कार्य स्नान करना बताया गया है, जिसे मोक्ष काल का स्नान कहा जाता है. यह स्नान शरीर और आत्मा दोनों को शुद्ध करता है. स्नान के बाद व्यक्ति को तर्पण और देव पूजन करना चाहिए. माना जाता है कि ग्रहण की छाया से उत्पन्न दोष इसी विधि से दूर होते हैं. इसके बाद दान करना विशेष रूप से शुभ होता है. जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करने से पुण्य कई गुना बढ़ जाता है.
शास्त्रों में उल्लेख है कि ग्रहण के बाद गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदी में स्नान करना सबसे उत्तम है. यदि संभव हो तो संगम या समुद्र जैसे स्थानों पर जाकर स्नान करना चाहिए. यह पापों का शमन और पुण्यफल की प्राप्ति का मार्ग माना गया है. हालांकि, यदि कोई व्यक्ति यात्रा करने में असमर्थ हो, तो घर पर स्नान करते समय जल में गंगाजल मिलाकर भी यह विधि पूरी की जा सकती है. स्नान करते समय पवित्र तीर्थों का ध्यान करना विशेष महत्व रखता है.
चंद्रमा का संबंध सफेद वस्तुओं से माना गया है. इसलिए ग्रहण के बाद दूध, चावल, चीनी, सफेद वस्त्र, मिठाई, बताशे और चांदी का दान करना श्रेष्ठ माना गया है. यदि ये वस्तुएं उपलब्ध न हों तो धन का दान भी उतना ही फलदायी होता है. साथ ही पितृपक्ष को ध्यान में रखते हुए काले तिल और जौ का दान करने की भी परंपरा है. शास्त्रों के अनुसार यह दान ग्रहण दोष से मुक्ति और पूर्वजों की शांति दोनों प्रदान करता है.
ग्रहण के बाद व्यक्ति को केवल स्नान और दान तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए. शास्त्रों में बताया गया है कि इस समय धार्मिक ग्रंथों का श्रवण और पाठ करना भी पुण्यकारी होता है. प्रसन्न चित्त होकर भोजन करना और परिवार के साथ धर्मकर्म में समय बिताना आत्मिक शांति का मार्ग माना गया है. इस प्रकार ग्रहण के बाद किए गए ये छोटे-छोटे उपाय न केवल दोष को समाप्त करते हैं बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करते हैं.