भारतीय संस्कृति में ग्रहण को केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाता, बल्कि इसे आध्यात्मिक और धार्मिक नजरिए से भी जोड़ा जाता है. चंद्र ग्रहण से संबंधित कई पौराणिक कथाएं हमारे शास्त्रों में विस्तार से वर्णित हैं. उनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा राहु और केतु की है, जो यह बताती है कि आखिर क्यों चंद्रमा समय-समय पर छिप जाता है और लोग इसे ग्रहण के रूप में देखते हैं.
पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश निकला, तो देवता और दानव दोनों इसे पाने के लिए उत्सुक हो गए. भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर केवल देवताओं को अमृत बांटने का निर्णय लिया. लेकिन राहु नाम का एक दानव चालाकी से देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और उसने भी अमृत पी लिया. यह देखकर सूर्य और चंद्रमा ने उसकी पहचान कर ली और तुरंत भगवान विष्णु को इसकी जानकारी दी. विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया. लेकिन अमृत पान करने के कारण उसका सिर (राहु) और धड़ (केतु) अमर हो गए. तब से राहु और केतु समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा को निगलने का प्रयास करते हैं, जिसे ग्रहण कहा जाता है.
हिंदू धर्म में चंद्र ग्रहण को केवल खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतावनी माना जाता है. मान्यता है कि ग्रहण काल में नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय हो जाती है, इसलिए पूजा-पाठ और जप-ध्यान को इस समय विशेष महत्व दिया गया है. लोग इस दौरान मंदिरों के द्वार बंद रखते हैं और ग्रहण खत्म होने के बाद स्नान कर शुद्धि करते हैं. गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है.
विज्ञान के अनुसार, चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है. यह एक सामान्य खगोलीय घटना है, जो हर साल कई बार होती है. हालांकि इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व के कारण इसे भारत समेत कई देशों में एक विशेष अवसर माना जाता है.
इस साल का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण आद लगेगा. इसकी अवधि लगभग 3 घंटे 30 मिनट की होगी. इस दौरान लोग न सिर्फ खगोलीय घटना का साक्षी बनेंगे, बल्कि इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं को भी याद करेंगे. यह ग्रहण लोगों को एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करेगा कि कैसे विज्ञान और आस्था दोनों अपनी-अपनी जगह पर महत्वपूर्ण हैं.