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राजकोट सिविल अस्पताल में डॉक्टर पर हमला, सीसीटीवी फुटेज वायरल!

गुजरात में रविवार को राजकोट सिविल अस्पताल के न्यरोसर्जरी विभाग के एक डॉक्टर पर हमले का एक वीडियो वायरल हो रहा है.

Ashutosh Rai
Edited By: Ashutosh Rai
राजकोट सिविल अस्पताल में डॉक्टर पर हमला, सीसीटीवी फुटेज वायरल!
Courtesy: AI

गुजरात : गुजरात में रविवार को राजकोट सिविल अस्पताल के न्यरोसर्जरी विभाग के एक डॉक्टर पर हमले का एक वीडियो वायरल हो रहा है. वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि मरीज के रिश्तेदार ने तीखी बहस के बाद डॉक्टर पर धावा बोल दिया. यह पूरी घटना सीसीटीवी में कैद हो गई.

रेजिडेंट डॉक्टरों में आक्रोश

इस घटना के बाद रेजिडेंट डॉक्टरों में आक्रोश फैल गया और उन्होंने मरीजों और डॉक्टरों की सुरक्षा बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल पर जाने की धमकी दी है. बता दें कि डॉक्टरों और मरीजों के बीच यह सब होना बहुत आम सा बन गया है. कई बार लोगों को ऐसी झडप देखने को मिलती रहती है.

'X' पर वायरल ट्टीट

सोशल मीडिया साइट 'X' पर @Lap_surgeon ने इस वीडियो को ट्टीट किया और कहा कि, " ख़तरनाक है! डॉक्टर को मारा जा रहा है, युवक को बचाया जा रहा है. यह घटना राजकोट मेडिकल कॉलेज अस्पताल की है." वीडियो पर लगातार कमेंट्स आ रहे हैं और कई लोग इसे देख डॉक्टरों की हालत में सुधार लाने को बोल रहे हैं, वहीं कई लोग डॉक्टर को ही दोशी ठहरा रहे हैं.

भारत में डॉक्टरों पर हमले: खतरनाक रुझान और आंकड़े

हिंसा का व्यापक पैमाना

एक सर्वे के अनुसार भारत में करीब 75% डॉक्टरों ने अपने कार्यस्थल पर किसी न किसी रूप में हिंसा या दुर्व्यवहार का सामना किया है, जिसमें शाब्दिक अपशब्द, धमकी या शारीरिक उत्पीड़न शामिल हैं. यह डेटा वैज्ञानिक अध्ययन और स्वास्थ्य पेशेवरों के अनुभव पर आधारित है.

काम के दौरान असुरक्षित महसूस करना

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 35% डॉक्टर विशेष रूप से नाइट ड्यूटी के दौरान खुद को सुरक्षित नहीं मानते. कई डॉक्टरों ने यह भी बताया कि उन्हें सुरक्षा के लिए खुद चाकू या पेपर स्प्रे जैसी चीज़ें साथ रखनी पड़ती हैं.

चिकित्सकीय कार्यस्थल पर भय और तनाव

एक अन्य सर्वे में पाया गया कि 58.2% डॉक्टर काम के दौरान असुरक्षित महसूस करते हैं, और 78.4% स्वास्थ्यकर्मियों का कहना है कि उन्हें ड्यूटी के दौरान धमकाया गया है या धमकी महसूस हुई है.

हिंसा के पीछे मुख्य कारण

विशेषज्ञों के अनुसार जितना अधिक रोगी लोड तथा आकस्मिक उपचार (जैसे इमरजेंसी वार्ड) में सेवाएँ होती हैं, उतना ही हिंसा की घटनाएं बढ़ती हैं. ज़्यादातर हमले रोगी के रिश्तेदारों द्वारा उत्पन्न किया जाता है, जब अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता या संचार में व्यवधान होता है.