उत्तराखंड हाई कोर्ट ने नैनीताल के नंदा देवी महोत्सव के दौरान बकरी बलि के लिए एक निर्दिष्ट स्थान पर बूचड़खाना स्थापित करने की अनुमति दे दी है. ये जगह नैना देवी मंदिर से दूर होगी. दरअसल, शुक्रवार (29 अगस्त) को मुख्य न्यायाधीश गुहनाथन नरेंद्र और जस्टिस सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने इस संबंध में दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया. याचिका में नंदा देवी महोत्सव के दौरान पशु बलि की प्राचीन परंपरा को बनाए रखने की मांग की गई थी.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नैनीताल के नैनी झील के उत्तरी छोर पर स्थित नैना देवी मंदिर में 2015 से पशु बलि पर प्रतिबंध है. स्थानीय निवासी पवन जाटव और अन्य याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा कि नंदा देवी महोत्सव के दौरान पशु बलि की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है.
पशु बलि पर प्रतिबंध और याचिका की मांग
उत्तराखंड हाई कोर्ट में चल रही याचिका की सुनवाई के दौरान साल 2015 में मंदिर में पशुओं के प्रवेश और बलि पर रोक लगने से भक्तों की आस्था को ठेस पहुंची है. याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि महोत्सव के दौरान बकरी बलि के लिए बूचड़खाना स्थापित करने की अनुमति दी जाए.
कोर्ट का आदेश: बूचड़खाने की स्थापना और निगरानी
हाई कोर्ट ने नगर पालिका को निर्देश दिया कि वह बूचड़खाने के लिए एक उपयुक्त स्थान चिह्नित करे और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) जारी करने का आदेश दिया. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बलि प्रक्रिया की निगरानी एक खाद्य निरीक्षक द्वारा की जाए. कोर्ट ने भक्तों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए महोत्सव के दौरान बूचड़खाने में अनुष्ठानिक बलि की अनुमति दी.
पर्यावरण और पशु अधिकारों पर छिड़ी बहस
पशु अधिकार कार्यकर्ता गौरी मौलेखी, जो पीपल फॉर एनिमल्स (PFA) से जुड़ी हैं, उन्होंने तर्क दिया कि सार्वजनिक स्थानों पर पशु बलि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है. हालांकि, कोर्ट ने भक्तों की धार्मिक भावनाओं को प्राथमिकता देते हुए यह फैसला सुनाया.
नारियल अर्पण: एक वैकल्पिक परंपरा
साल 2015 के प्रतिबंध के बाद कई भक्तों ने बकरी बलि के बजाय नारियल अर्पण शुरू कर दिया था. मंदिर परिसर में नारियल अर्पण के लिए एक विशेष क्षेत्र भी निर्धारित किया गया है.