Almora Dussehra: आज विजयदशमी है. इस दिन रावण के पुतले को जलाया जाता है. बुराई पर अच्छाई की जीत को दिखाने के लिए यह परंपरा हर साल निभाई जाती है. आमतौर पर आपने देखा होगा कि इस दिन रावण के साथ मेघनाद और कुंभकरण के पुतले को जलाया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि रावण के पूरे खानदान के पुतले को भी जलाया जाता है. उत्तराखंड का अल्मोड़ा शहर अपने सांस्कृतिक वैभव और अनोखी परंपराओं के लिए जाना जाता है.
यहां दशहरा पर्व केवल रावण दहन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे एक अद्वितीय और भव्य तरीके से मनाया जाता है. अल्मोड़ा में हर साल दशहरे के मौके पर केवल रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का नहीं, बल्कि पूरे रावण परिवार का पुतला बनाया और जलाया जाता है.
नगर के विभिन्न मोहल्लों में पुतला समितियां करीब एक महीने पहले से पुतले तैयार करने लगती हैं और दशमी के दिन गाजे-बाजे के साथ नगरभर में इनकी झांकी निकाली जाती है. इस अद्भुत आयोजन को देखने के लिए न केवल स्थानीय लोग, बल्कि देश–विदेश से आए सैलानी भी उमड़ पड़ते हैं. इसीलिए अल्मोड़ा का दशहरा, लोकप्रियता में कुल्लू और मैसूर के बाद तीसरे स्थान पर गिना जाता है. यहां के पुतले कागज, गत्ता और वेस्ट मटेरियल से बनाए जाते हैं, जिन्हें रंग-बिरंगे पेंट से सजाया जाता है. खास बात यह है कि ये पुतले इतनी खूबसूरती से बनाए जाते हैं कि देखने वालों को असली मूर्तियों का आभास होता है. इस बार भी 18 से अधिक पुतले तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें रावण परिवार के सभी प्रमुख सदस्य शामिल हैं.
जहां देशभर में दशहरे पर केवल रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं, वहीं अल्मोड़ा में रावण के पूरे परिवार के असुरों के पुतले बनाए जाते हैं. इनमें मारीच, सुबाहु, अहिरावण, ताड़का, अतिकाय, नरान्तक, देवांतक और प्रहस्त तक शामिल होते हैं. यही कारण है कि यहां का दशहरा बाकी जगहों से अलग और अनोखा है.
अल्मोड़ा की सबसे खास परंपरा है-वेस्ट मटेरियल से पुतले तैयार करना. एल्युमिनियम के तार, गत्ता, कागज और कागज की लुगदी से बनाए गए ये पुतले न केवल पर्यावरण के अनुकूल होते हैं बल्कि आकर्षण और सजीवता में मूर्तियों से कम नहीं दिखते. सूखने के बाद इन्हें खूबसूरत पेंटिंग्स से सजाया जाता है.
दशहरे के दिन नगर के अलग-अलग मोहल्लों की पुतला समितियां अपने पुतलों को लेकर शिखर तिराहे पर इकट्ठा होती हैं. यहां से गाजे-बाजे और डोल-नगाड़ों के साथ भव्य बारात निकाली जाती है. इस जुलूस को देखने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ पड़ती है और पर्यटक भी इस रंगारंग दृश्य का आनंद लेते हैं.
अल्मोड़ा में दशहरा केवल त्योहार नहीं, बल्कि परंपराओं की विरासत है. यहां का ‘हुक्का क्लब’ लगातार 41 सालों से ताड़का का पुतला बना रहा है. इसी तरह जौहरी मोहल्ला कुंभकर्ण और पलटन बाज़ार मेघनाद के पुतले बनाने की जिम्मेदारी निभाता आ रहा है. यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती जा रही है.