menu-icon
India Daily

बुरी आत्माओं का साया! नवजात को फ्रिज में डालकर कमरे में सो गई मां, चीख सुनकर अंदर आई दादी और फिर...

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां प्रसव के बाद मानसिक बीमारी (पोस्टपार्टम साइकोसिस) से जूझ रही 23 वर्षीय महिला ने अपने 15 दिन के शिशु को फ्रिज में रख दिया. परिजन पहले इसे 'बुरी आत्माओं का असर' मानकर झाड़-फूंक में लग गए, लेकिन डॉक्टरों ने महिला की बीमारी की पुष्टि की. समय रहते बच्चे को बचा लिया गया और अब उसकी हालत स्थिर है.

auth-image
Edited By: Kuldeep Sharma
ai generated
Courtesy: web

यह घटना मुरादाबाद के कुर्ला इलाके की है. बीते शुक्रवार को 23 साल की महिला ने अपने नवजात बेटे को फ्रिज में रखकर खुद सो गई. बच्चे की दादी ने उसकी रोने की आवाज सुनकर उसे बाहर निकाला और तुरंत अस्पताल पहुंचाया. डॉक्टरों ने बच्चे की हालत स्थिर बताई. महिला को बाद में मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया, जहां उसे पोस्टपार्टम साइकोसिस का मरीज पाया गया.

पुलिस और परिजनों के अनुसार, महिला ने प्रसव के महज 15 दिन बाद यह खौफनाक कदम उठाया. उसने नवजात बेटे को फ्रिज में रख दिया और कमरे में जाकर सो गई. कुछ देर बाद बच्चे की रोने की आवाज सुनकर दादी रसोई में पहुंचीं और तुरंत उसे बाहर निकाला. आनन-फानन में बच्चे को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसकी स्थिति सामान्य बताई.

परिजनों ने माना 'बुरी आत्माओं' का असर

महिला की तबीयत डिलीवरी के बाद से ठीक नहीं थी. घटना के बाद परिवार को लगा कि उस पर किसी बुरी आत्मा का असर है. उन्होंने झाड़-फूंक और टोने-टोटके जैसे उपाय किए, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. बाद में जब विशेषज्ञ डॉक्टरों को दिखाया गया, तो असली कारण सामने आया.

डॉक्टरों ने बताई बीमारी

महिला को जब मनोरोग और नशा मुक्ति केंद्र ले जाया गया, तो डॉक्टर कार्तिकेय गुप्ता ने बताया कि उसे पोस्टपार्टम साइकोसिस है. यह बीमारी प्रसव के बाद कुछ महिलाओं में देखी जाती है, जिसमें उनकी सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित हो जाती है. वर्तमान में महिला को काउंसलिंग और दवाइयों के जरिए इलाज दिया जा रहा है.

क्या है पोस्टपार्टम साइकोसिस?

विशेषज्ञ डॉक्टरों के अनुसार यह मानसिक बीमारी डिलीवरी के बाद तेजी से बढ़ सकती है और मां और बच्चे दोनों की जान को खतरे में डाल सकती है. इसे 'प्यूरपेरल साइकोसिस' या 'पोस्टनेटल साइकोसिस' भी कहा जाता है. अक्सर लोग इसे सामान्य 'बेबी ब्लूज़' समझने की भूल कर बैठते हैं, जबकि यह गंभीर बीमारी है. डॉक्टरों का कहना है कि अगर प्रसव के बाद महिलाओं को पर्याप्त भावनात्मक और सामाजिक सहयोग न मिले तो ऐसी स्थिति और गंभीर हो सकती है.