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Lok Sabha Elections 2024: क्या मोदी के खिलाफ पहले ही हार मान बैठी है कांग्रेस, अजय राय के नामांकन के क्या हैं मायने?

Lok Sabha Elections 2024: उत्तर प्रदेश को हमेशा से ही देश की राष्ट्रीय राजनीति बनाने में अहम योगदान देने वाला राज्य माना जाता रहा है, ऐसे में जब कांग्रेस और बीजेपी के बीच राष्ट्रीय स्तर पर लड़ाई की बात चल रही हो तो राज्य में हालात पर चर्चा कैसे न हो. आइए एक नजर राज्य में कांग्रेस की स्थिति पर डालते हैं-

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Lok Sabha Elections 2024: दशकों तक उत्तर प्रदेश की राजनीति पर हावी रही कांग्रेस को हाल के दिनों में यूपी की राजनीति ने हाशिए पर ला खड़ा किया है. उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें तो देश की सबसे पुरानी पार्टी ने सीटों और वोट शेयर दोनों के मामले में अपना अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया था. कांग्रेस पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में महज 19.7% वोट शेयर के साथ सिर्फ 1 सीट जीती थी  और  दुर्भाग्य से पार्टी के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में भी स्थिति कुलग अलग नजर नहीं आ रही है.

2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य की 80 लोकसभा सीटों में कांग्रेस को सिर्फ एक पर ही जीत मिली और ऐसी हार हुई कि राहुल गांधी भी अपने गढ़ अमेठी को नहीं बचा सके और स्मृति ईरानी के हाथों हार गए. पार्टी की झोली में एकमात्र सीट रायबरेली थी, जिसका प्रतिनिधित्व खुद सोनिया गांधी ने किया था. हालांकि, इस बार कांग्रेस को वहां भी एक नए चेहरे की जरूरत होगी क्योंकि सोनिया गांधी ने चुनावी राजनीति से किनारा कर लिया है और अब वह राज्यसभा की सदस्य हैं.

कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा है आगामी लोकसभा चुनाव

आगामी लोकसभा चुनाव को कांग्रेस की अग्निपरीक्षा कहना गलत नहीं होगा क्योंकि यह राज्य में अपनी खोई हुई कुछ जमीन हासिल करने की तैयारी कर रही है. समाजवादी पार्टी के साथ प्रदेश में उसका गठबंधन अपनी जमीन को वापस हासिल करने की शुरुआत है जिसके तहत वो राज्य में 17 सीटों पर चुनाव लड़ती नजर आएगी.

कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अब तक 17 में से केवल 9 सीटों पर ही उम्मीदवारों की घोषणा की है. इतना ही नहीं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की अमेठी और रायबरेली से संभावित उम्मीदवारी पर भी अभी सस्पेंस बरकरार है. कांग्रेस का यह हाल तब है जब प्रदेश में बीजेपी ने अपने अधिकांश उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है. कांग्रेस की ओर से अब तक घोषित किए गए उम्मीदवारों पर नजर डालने पर कुछ प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी की रणनीति की कमजोरी साफ नजर आती है.

वराणसी- हकीकत से कोसों दूर कांग्रेस

वाराणसी सीट की बात करें तो यहां पर कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय एक गंभीर चुनौती के बजाय सिर्फ सांकेतिक कैंडिडेट के रूप में ज्यादा नजर आते हैं. अजय राय को कांग्रेस ने एक बार फिर प्रधान मंत्री मोदी के प्रतिनिधित्व वाले निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी से मैदान में उतारा है. अजय राय का दोबारा नामांकन उस सीट पर कुछ अलग करने की कोशिश से ज्यादा लोकसभा चुनाव में अपनी हार मान लेने जैसा नजर आ रहा है. अजय राय वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी से दो बार हार चुके हैं. 

लगातार घट रहा है कांग्रेस का वोट शेयर

ऐसे में शायद ही किसी को उम्मीद होगी कि इस बार के लोकसभा चुनावों में नतीजा कुछ अलग होगा. कांग्रेस अगर इस अहम सीट पर जीत हासिल करना चाहती है तो उसे मोदी के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक जादुई रणनीति तैयार करने की दरकार है. इतना ही नहीं वाराणसी के पिछले 2 चुनावों में सामने आए नतीजों पर नजर डालें तो उसके वोट शेयर में भी भारी इजाफा हुआ है जबकि कांग्रेस के लिए उम्मीदें बहुत कम ही बची हैं. यूपी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अजय राय एक मजबूत दावेदार जरूर नजर आते हैं लेकिन स्थानीय समर्थन की कमी नतीजे में बदलाव करती नजर नहीं आती है.

वोट शेयर पर नजर डालें तो जहां 1999 में बीजेपी का वोट शेयर 33 फीसदी था तो वहीं पर 2004 में कांग्रेस ने 33 फीसदी वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी. इसके बाद से कांग्रेस लगातार अपनी जमीन खोती नजर आई. 2009 में बीजेपी ने 31 फीसदी वोट शेयर के साथ कब्जा किया तो वहीं पर 2014 में ये बढ़कर 56 प्रतिशत पहुंच गया. 2019 में जहां बीजेपी का वोट शेयर 64 फीसदी था तो वहीं पर कांग्रेस को महज 14 प्रतिशत वोट शेयर ही रह गए थे. हालांकि अजय राय के पक्ष में यह बात जरूर रही कि 2014 के मुकाबले उनका वोट शेयर दोगुना हो गया था. 2014 में उन्हें सिर्फ 7 प्रतिशत वोट शेयर ही मिला था लेकिन तब सपा और कांग्रेस गठबंधन में नहीं लड़ रहे थे.

वाराणसी के चुनावी इतिहास पर एक नजर

वाराणसी लोकसभा सीट की बात करें तो यह निर्वाचन क्षेत्र 1991 से ही बीजेपी के कब्जे में रहा है, जहां पर उसे सिर्फ 2004 में ही हार का सामना करना पड़ा था. 2004 में कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा ने जीता हासिल की थी. वाराणसी में कांग्रेस के लाख प्रयासों के बावजूद, बीजेपी ने मध्यावधि चुनावों सहित बाद के चुनावों में लगातार इस सीट पर कब्जा किया है. कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा ने 2004 में सीट जीतकर कुछ समय के लिए भाजपा के प्रभुत्व को तोड़ दिया, लेकिन 2009 में भाजपा ने इसे फिर से हासिल कर लिया.

क्यों सांकेतिक है अजय राय का नॉमिनेशन

अजय राय की बात करें तो 5 बार के विधायक राय ने 2014 और 2019 के आम चुनावों में पीएम मोदी के खिलाफ ताल ठोंकी थी लेकिन जबरदस्त उपस्थिति के बावजूद, उनके खाते में क्रमशः 75,614 और 152,548 वोट ही आए थे. अजय राय के लिए मोदी की जबरदस्त लोकप्रियता को पार कर पाना एवरेस्ट चढ़ने जितना मुश्किल नजर आया है. दिलचस्प बात यह है कि अजय राय ने साल 2009 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर वाराणसी से चुनाव भी लड़ा था लेकिन तब भी वो 1,23,874 वोटों का ही समर्थन हासिल कर पाए थे.

वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व विजेता

  • नरेंद्र दामोदर दास मोदी (भाजपा, 2019)
  • नरेंद्र दामोदर दास मोदी (भाजपा, 2014)
  • डॉ. मुरली मनोहर जोशी (भाजपा, 2009)
  • डॉ. राजेश कुमार मिश्रा (कांग्रेस, 2004)
  • शंकर प्रसाद जयसवाल (भाजपा, 1999)
  • शंकर प्रसाद जयसवाल (भाजपा, 1998)
  • शंकर प्रसाद जयसवाल (बीजेपी, 1996)
  • शीश चन्द्र दीक्षित (भाजपा, 1991)
  • अनिल शास्त्री (जनता दल, 1989)
  • श्यामलाल यादव (कांग्रेस, 1984)
  • कमलापति त्रिपाठी (कांग्रेस, 1980)
  • चन्द्र शेखर (बीएलडी, 1977)

कांग्रेस के लिए मुश्किल है वाराणसी का किला भेदना

राजनीतिक गलियारों में यह मान्यता है कि वाराणसी में पीएम मोदी को हराना बेहद मुश्किल काम है. इस अहम सीट पर कांग्रेस की जीत हार उत्तर प्रदेश में पार्टी की व्यापक चुनावी रणनीति के बारे में भी मजबूत संकेत दे सकता है. ऐसे में जब 80 संसदीय सीटें दांव पर लगी हों तो यह राज्य राष्ट्रीय स्तर की राजनीति को बनाने-बिगाड़ने में बेहद अहम भूमिका निभाता है.