उन्नाव रेप केस: पूर्व MLA कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत, दिल्ली हाईकोर्ट ने राहत देने के साथ ही रखी ये कठिन शर्त

दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्नाव रेप केस में दोषी कुलदीप सिंह सेंगर को सशर्त ज़मानत दी है. अपील लंबित रहने तक सजा सस्पेंड रहेगी. कोर्ट ने पीड़िता की सुरक्षा को लेकर सख्त शर्तें लगाई हैं.

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Kanhaiya Kumar Jha

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी से निष्कासित पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को बड़ी राहत देते हुए उन्नाव रेप केस में उनकी जेल की सजा को अस्थायी रूप से सस्पेंड कर दिया है. कोर्ट ने सेंगर को सशर्त जमानत प्रदान की है. यह आदेश तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक उनकी अपील पर अंतिम सुनवाई नहीं हो जाती.

जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने सेंगर की उस अपील पर यह आदेश दिया, जिसमें उन्होंने दिसंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सज़ा को चुनौती दी है. हाई कोर्ट ने कहा कि अपील की सुनवाई लंबी चल सकती है, ऐसे में सजा को फिलहाल सस्पेंड किया जा सकता है, लेकिन सख्त शर्तों के साथ.

15 लाख के बॉन्ड पर रिहाई का आदेश

कोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर को 15 लाख रुपये के पर्सनल बॉन्ड और इतनी ही राशि की तीन जमानतें देने पर रिहा करने का निर्देश दिया है. साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जमानत का लाभ पूरी तरह शर्तों के पालन पर निर्भर करेगा.

पीड़िता की सुरक्षा पर विशेष जोर

हाई कोर्ट ने पीड़िता की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए सेंगर को कड़े निर्देश दिए हैं. अदालत ने आदेश दिया कि सेंगर पीड़िता के घर से पांच किलोमीटर के दायरे में प्रवेश नहीं करेंगे. इसके अलावा, वह पीड़िता या उसकी मां को किसी भी तरह से धमकाने, संपर्क करने या प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेंगे. कोर्ट ने साफ कहा कि यदि किसी भी शर्त का उल्लंघन हुआ, तो जमानत तत्काल रद्द कर दी जाएगी.

2017 का मामला और ट्रायल का इतिहास

कुलदीप सिंह सेंगर को जून 2017 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में एक नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया गया था. यह मामला देशभर में चर्चा का विषय बना था. 1 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए इस केस और इससे जुड़े अन्य मामलों को उत्तर प्रदेश से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया था.

अन्य मामलों में भी सजा काट रहे हैं सेंगर

उन्नाव मामले के अलावा, पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत से जुड़े केस में भी सेंगर को सजा सुनाई गई थी. इस मामले में उन्हें 10 साल की कैद हुई थी. इस सजा के खिलाफ उनकी अपील भी फिलहाल हाई कोर्ट में लंबित है. सेंगर की ओर से दलील दी गई कि वह पहले ही लंबे समय तक जेल में रह चुके हैं, इसलिए सजा को सस्पेंड किया जाए.

अदालत की सख्त चेतावनी

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि जमानत कोई अधिकार नहीं बल्कि अस्थायी राहत है. अदालत ने कहा कि यदि सेंगर ने अदालत की शर्तों का उल्लंघन किया या मामले को प्रभावित करने की कोशिश की, तो उन्हें दोबारा जेल भेजा जा सकता है.