साल 2015 के दादरी लिंचिंग मामले ने पूरे देश को झकझोर दिया था. अब एक बार फिर यह मामला सुर्खियों में है. वरिष्ठ सीपीआई(एम) नेता बृंदा करात ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश सरकार के उस फैसले पर आपत्ति जताई है, जिसमें आरोपियों पर से मुकदमा वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की गई है. करात का कहना है कि यह कदम न्याय की प्रक्रिया को कमजोर करने वाला है.
बृंदा करात ने अपने पत्र में राष्ट्रपति से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है. उन्होंने लिखा कि दादरी में मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा हत्या के मामले में यूपी सरकार ने केस वापस लेने का फैसला किया है, जिसे राज्यपाल की लिखित अनुमति मिली है. करात ने इस अनुमति को पूरी तरह अवैध और अन्यायपूर्ण करार दिया.
करात ने पत्र में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने पूछा कि क्या राज्यपाल का कर्तव्य नहीं है कि वह सरकार को ऐसे कदम से रोके. करात के अनुसार, संविधान और कानून के शासन की रक्षा करना राज्यपाल की जिम्मेदारी है, न कि न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करने की अनुमति देना.
सीपीआई(एम) नेता ने बताया कि पीड़ित अखलाक की बेटी अदालत में बयान दे चुकी हैं और सभी आरोपियों की पहचान कर चुकी हैं. इसके अलावा, दो अन्य प्रत्यक्ष गवाहों की गवाही अभी बाकी है. ऐसे में केस वापस लेने की कोशिश न्याय की प्रक्रिया को बीच में रोकने जैसा है.
करात ने आरोप लगाया कि यूपी सरकार ने लाठी के इस्तेमाल, व्यक्तिगत दुश्मनी के अभाव और सांप्रदायिक तनाव की आशंका जैसे तर्क देकर केस वापस लेने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि ये तर्क न्याय के हित में नहीं, बल्कि राजनीतिक मंशा से प्रेरित हैं.
सितंबर 2015 में दादरी में कथित तौर पर गाय काटने की अफवाह के बाद भीड़ ने अखलाक और उनके बेटे पर हमला किया था. इस हमले में अखलाक की मौत हो गई थी, जबकि उनका बेटा गंभीर रूप से घायल हुआ था.