अखलाख लिंचिंग केस: कोर्ट ने यूपी सरकार को दिया झटका, केस वापस लेने की याचिका ठुकराई
बिसाहड़ा अखलाक लिंचिंग मामले में सूरजपुर अदालत ने यूपी सरकार की केस वापसी की याचिका खारिज कर दी है. अदालत ने इसे निराधार बताते हुए न्याय प्रक्रिया को मजबूत करने वाला फैसला बताया.
करीब एक दशक पुराने बिसाहड़ा अखलाक लिंचिंग मामले में एक बार फिर न्यायिक प्रक्रिया केंद्र में है. सूरजपुर की अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें आरोपियों के खिलाफ चल रहे मुकदमे को वापस लेने की मांग की गई थी.
अदालत की सख्त टिप्पणी ने न सिर्फ सरकार के रुख पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी साफ किया है कि गंभीर अपराधों में कानून से समझौता नहीं किया जा सकता.
अदालत का सख्त रुख
सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान सूरजपुर अदालत ने यूपी सरकार की ओर से दाखिल आवेदन को पूरी तरह खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष की याचिका में कोई ठोस कानूनी आधार नहीं है. न्यायालय ने इसे 'फिजूल' और 'बिना तर्क के' बताते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे गंभीर मामले में केस वापस लेने का प्रयास न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.
क्या थी सरकार की मांग
उत्तर प्रदेश सरकार ने स्थानीय अदालत से अनुरोध किया था कि बिसाहड़ा लिंचिंग केस में नामजद सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की अनुमति दी जाए. सरकार का तर्क था कि केस को आगे बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है. हालांकि, अदालत ने इस दलील को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि अभियोजन की जिम्मेदारी तथ्यों और सबूतों के आधार पर तय होती है, न कि प्रशासनिक इच्छा से.
क्या थी 2015 की पूरी घटना
सितंबर 2015 में दादरी के बिसाहड़ा गांव में 50 वर्षीय मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी. आरोप था कि उनके घर में गोमांस रखा गया है. अफवाहों के आधार पर हुई इस हिंसा ने पूरे देश को झकझोर दिया था. दिल्ली से मात्र 50 किलोमीटर दूर हुई इस घटना ने भीड़ हिंसा और कानून व्यवस्था पर गंभीर बहस छेड़ दी थी.
केस वापसी से फिर बढ़ी बहस
लगभग दस साल बाद सरकार की ओर से केस वापस लेने की पहल ने इस मामले को फिर सुर्खियों में ला दिया. आलोचकों का कहना था कि इससे पीड़ित परिवार को न्याय मिलने की उम्मीद कमजोर होती है. अदालत के फैसले ने इन आशंकाओं पर विराम लगाया और यह संदेश दिया कि समय बीतने से अपराध की गंभीरता कम नहीं होती.
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
अदालत के फैसले का कई सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने स्वागत किया. सीपीआई(एम) नेता बृंदा करात ने इसे अखलाक मामले में न्याय की दिशा में बड़ा कदम बताया. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि अदालत का यह निर्णय कानून के राज और संविधान की मूल भावना को मजबूत करता है, जिससे पीड़ित परिवार को न्याय की उम्मीद बनी रहती है.
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