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यूपी सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे AAP सांसद संजय सिंह, स्कूल बंद करने का है मामला

उत्तर प्रदेश सरकार ने 16 जून 2025 को एक आदेश जारी कर कम नामांकन वाले 105 प्राथमिक स्कूलों को बंद करने और उन्हें नजदीकी स्कूलों में विलय करने की घोषणा की. इसके बाद 24 जून को उन स्कूलों की सूची जारी की गई, जिन्हें विलय के लिए चुना गया.

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Edited By: Gyanendra Sharma
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Courtesy: Social Media

आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद और उत्तर प्रदेश प्रभारी संजय सिंह ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें कम नामांकन वाले 105 सरकारी प्राथमिक स्कूलों को बंद कर उन्हें तीन किलोमीटर के दायरे में अन्य स्कूलों के साथ विलय करने का निर्णय लिया गया है. यह नीति जिसे 'अनुपयोगी स्कूलों के समेकन' (Policy to Consolidate Unutilised Schools) के तहत लागू किया गया है को संजय सिंह ने मनमाना, असंवैधानिक और बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया है. यह मामला शिक्षा के मौलिक अधिकार और संवैधानिक प्रावधानों को लेकर एक बार फिर चर्चा में आ गया है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने 16 जून 2025 को एक आदेश जारी कर कम नामांकन वाले 105 प्राथमिक स्कूलों को बंद करने और उन्हें नजदीकी स्कूलों में विलय करने की घोषणा की. इसके बाद 24 जून को उन स्कूलों की सूची जारी की गई, जिन्हें विलय के लिए चुना गया. सरकार का तर्क है कि इन स्कूलों में शून्य या बहुत कम विद्यार्थी थे जिसके चलते संसाधनों और शिक्षकों के बेहतर उपयोग के लिए यह कदम उठाया गया. हालांकि, इस फैसले ने शिक्षकों, अभिभावकों और विपक्षी दलों के बीच तीखा विरोध पैदा किया है.

संजय सिंह ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21ए और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act), 2009 का उल्लंघन करता है. RTE नियमों के अनुसार, 300 से अधिक आबादी वाले प्रत्येक क्षेत्र में एक किलोमीटर के दायरे में प्राथमिक स्कूल उपलब्ध होना चाहिए. संजय सिंह का कहना है कि इन स्कूलों को बंद करने से विशेष रूप से वंचित और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चों को लंबी दूरी तय कर स्कूल जाना पड़ेगा, जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित होगी.

संजय सिंह ने यह भी दावा किया कि सरकार ने इस नीति को लागू करने से पहले न तो कोई सार्वजनिक परामर्श किया और न ही कोई स्पष्ट मापदंड निर्धारित किया. यह नीति न केवल शिक्षा की पहुंच को सीमित कर रही है, बल्कि ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चों के भविष्य को भी खतरे में डाल रही है.