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India Daily

'संघ में ब्राह्मण, मुसलमान और ईसाई की जगह कोई नहीं...', RSS प्रमुख मोहन भागवत ने क्यों कही ये बात

भागवत ने संघ की कार्यपद्धति, हिंदू समाज की व्यापक अवधारणा और राष्ट्रीय एकता पर गहन विचार व्यक्त किए.

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Edited By: Gyanendra Sharma
Mohan Bhagwat
Courtesy: Photo-RSS

बेंगलुरु: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम ‘संघ की 100 वर्ष की यात्रा नए क्षितिज’ के दूसरे दिन सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने एक महत्वपूर्ण संबोधन दिया. कर्नाटक की राजधानी में पीईएस विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित इस सत्र में दक्षिण भारत के लगभग 1,200 प्रमुख व्यक्तियों ने शिरकत की.  

भागवत ने संघ की कार्यपद्धति, हिंदू समाज की व्यापक अवधारणा और राष्ट्रीय एकता पर गहन विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि संघ में सिर्फ हिंदुओं को अनुमति है. किसी मुसलमान को और किसी ईसाई को संघ में अनुमति नहीं है. 

 मुसलमान और ईसाई की जगह कोई नहीं

आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा कि विभिन्न संप्रदायों के लोग मुस्लिम, ईसाई, किसी भी संप्रदाय के लोग,संघ में आ सकते हैं लेकिन अपनी विशिष्टता को बाहर रखें. आपकी विशेषता का स्वागत है. लेकिन जब आप शाखा के अंदर आते हैं, तो आप भारत माता के पुत्र, इस हिंदू नियमित रूप से हिंदू समाज कहे जाने वाले अन्य सभी जातियां भी शाखा में आती हैं.  लेकिन हम उनकी गिनती नहीं करते हैं और हम यह नहीं पूछते हैं कि वे कौन हैं.  हम सभी भारत माता के पुत्र हैं.  संघ इसी तरह काम करता है. ”

आगे उन्होंने समझाया, विभिन्न संप्रदायों से जुड़े लोग चाहे वे मुस्लिम हों, ईसाई हों या अन्य संघ में आ सकते हैं, लेकिन अपनी विशिष्ट पहचान को बाहर रखकर.  जब आप शाखा में कदम रखते हैं, तो आप केवल भारत माता के पुत्र के रूप में आते हैं.  यहां सभी जातियां और वर्ग एक साथ खड़े होते हैं, लेकिन हम उनकी गिनती या पहचान पर ध्यान नहीं देते.  हम सब एक ही मां की संतान हैं.  

 सभी के पूर्वज एक ही हैं-भागवत

उनके अनुसार, हिंदू वह नहीं जो केवल धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करता है, बल्कि वह जो भारत भूमि के प्रति जिम्मेदारी महसूस करता है.  उन्होंने चार प्रकार के हिंदुओं का उल्लेख किया जो अपनी जड़ों से जुड़े हैं, जो भटक गए हैं, जो भुला दिए गए हैं और जो नई पीढ़ी के रूप में उभर रहे हैं.  विशेष रूप से, उन्होंने भारत के मुसलमानों और ईसाइयों का जिक्र करते हुए कहा कि इस देश में कोई अहिंदू नहीं है.  सभी के पूर्वज एक ही हैं इस पावन भूमि के निवासी.  शायद वे इसे भूल गए हों या भुला दिया गया हो, लेकिन उनकी जड़ें हिंदू संस्कृति से जुड़ी हैं.  भारत की आत्मा हिंदू संस्कृति ही है, जो सभी को समेटने वाली है. 

संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया-भागवत

संघ के 100 वर्षों की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए भागवत ने संगठन के संघर्षों का जिक्र किया.  उन्होंने बताया कि संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया, स्वयंसेवकों पर हमले हुए, लेकिन संगठन कभी रुका नहीं.  हम सत्ता या प्रमुखता की भूखे नहीं हैं.  हमारा लक्ष्य राष्ट्र के गौरव को मजबूत करना है न कि व्यक्तिगत लाभ.  हिंदू समाज चरम पर है और विश्व को एकजुट करने की क्षमता रखता है.

 उन्होंने आरएसएस के रजिस्ट्रेशन पर उठने वाले सवालों का भी जवाब दिया, कहते हुए कि कानूनी मान्यता व्यक्तियों के समूहों को भी मिलती है भले रजिस्ट्रेशन न हो.  “प्रतिबंधों ने ही हमारी वैधता साबित की. ”कार्यक्रम में आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले सहित कई प्रमुख हस्तियां मौजूद रहीं.  यह संबोधन न केवल संघ के भविष्य की दिशा निर्धारित करता है, बल्कि समावेशी हिंदुत्व की अवधारणा को मजबूती प्रदान करता है.