कर्नाटक कांग्रेस में सत्ता की जंग, 2.5 साल का समझौता अब बन रहा विवाद का कारण

2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की थी. लेकिन जीत के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार के बीच जबरदस्त खींचतान शुरू हो गई थी.

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Gyanendra Sharma

बेंगलुरु: कर्नाटक की सियासत इन दिनों फिर गरमाई हुई है. कांग्रेस पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच चल रही रस्साकशी अब खुलकर सामने आ गई है. एक तरफ शिवकुमार के समर्थक विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं और नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ सिद्धारमैया साफ कह रहे हैं कि पार्टी हाईकमान जो फैसला लेगा, वही अंतिम होगा. लेकिन इस पूरे विवाद की जड़ 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद कथित तौर पर हुई एक “सत्ता साझेदारी डील” में छिपी है.

2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की थी. लेकिन जीत के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार के बीच जबरदस्त खींचतान शुरू हो गई थी. उस वक्त पार्टी के भीतर संकट इतना गहरा गया था कि कई दिन तक सरकार बनाने का गतिरोध बना रहा.

दिल्ली में एक बंद कमरे की बैठक में हुआ था समझौता

कई मीडिया रिपोर्ट्स और शिवकुमार खेमे के करीब सूत्रों का दावा है कि आखिरकार 18 मई 2023 को दिल्ली में एक बंद कमरे की बैठक में समझौता हुआ था. इसमें तय हुआ था कि पहले ढाई साल (2.5 वर्ष) सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रहेंगे और उसके बाद बारी डी.के. शिवकुमार की आएगी. इस बैठक में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, महासचिव केसी वेणुगोपाल, रणदीप सिंह सुरजेवाला, सिद्धारमैया, डी.के. शिवकुमार और डी.के. शिवकुमार के भाई एवं सांसद डी.के. सुरेश मौजूद थे.

हालांकि कांग्रेस पार्टी ने इस समझौते को कभी आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया. पार्टी नेतृत्व हमेशा यही कहता रहा है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह फैसला हाईकमान करेगा. लेकिन अब जब ढाई साल का वक्त पूरा होने वाला है, शिवकुमार खेमा उस कथित वादे को याद दिला रहा है.

दिल्ली में डेरा, बेंगलुरु में तनाव

पिछले कुछ दिनों से शिवकुमार के समर्थक दर्जनों विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. उनका साफ कहना है कि अब सिद्धारमैया को कुर्सी छोड़नी चाहिए. दूसरी तरफ सिद्धारमैया भी पीछे हटने के मूड में नहीं हैं. उन्होंने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा है कि वह पार्टी के निर्देश का पालन करेंगे, लेकिन अभी तक हाईकमान ने उन्हें हटाने का कोई संकेत नहीं दिया है. सूत्रों की मानें तो सिद्धारमैया खेमा यह तर्क दे रहा है कि 2023 में जो भी बात हुई थी, वह सिर्फ संकट टालने के लिए थी, कोई लिखित समझौता नहीं था. वहीं शिवकुमार के समर्थक इसे विश्वासघात बता रहे हैं.