'बेंगलुरु दूसरा गुरुग्राम बन चुका है...', अमीर शहरों की बुरी हालत पर किरण मजूमदार-शॉ ने सरकारों को ठहराया जिम्मेदार
बायोकॉन की चेयरपर्सन किरण मजूमदार-शॉ ने बेंगलुरु और गुरुग्राम की बदहाल हालत पर कड़ा हमला बोला. उन्होंने कहा कि सरकारें इन अमीर शहरों से सिर्फ कमाई करती हैं, लेकिन बुनियादी सुविधाएं देने में नाकाम हैं. खराब शहरी योजना और नियमों की अनदेखी से हालात दिन-ब-दिन बिगड़ रहे हैं.
Kiran Mazumdar-Shaw: बेंगलुरु की मशहूर उद्योगपति और बायोकॉन (Biocon) की चेयरपर्सन किरण मजूमदार-शॉ ने देश के सबसे अमीर शहरों की बदहाल हालत पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने बेंगलुरु और गुरुग्राम की तुलना करते हुए कहा कि ये शहर सरकारों की लापरवाही और खराब शहरी योजना का शिकार हो रहे हैं.
उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा, 'हर अमीर शहर की यही हालत है. बेंगलुरु दूसरा गुरुग्राम बन चुका है. राज्य सरकारें इन शहरों से पैसा तो कमा रही हैं लेकिन बुनियादी सुविधाएं देने की जिम्मेदारी नहीं निभा रहीं. बिल्डिंग नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, सब सिर्फ पैसे कमाने के लिए.'
'हर साल गुरुग्राम एक...'
यह बयान तब आया जब फेमस राइटर लेखक और कारोबारी सुहेल सेठ ने दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान गुरुग्राम को देश पर एक शर्म बताया. उन्होंने तंज कसते हुए कहा, 'हर साल गुरुग्राम एक नई वेनिस बन जाता है वो भी बिना किसी सरकारी मदद के.' उनका इशारा शहर में हर साल लगने वाले जलभराव और कचरे की समस्या की ओर था.
ट्रैफिक सिग्नल से ज्यादा शराब की दुकानें
सुहेल सेठ ने आगे कहा कि गुरुग्राम में ट्रैफिक सिग्नल से ज्यादा शराब की दुकानें हैं और स्कूलों से ज्यादा बार. ऐसे नेताओं के साथ स्मार्ट सिटी कैसे बनेंगी?' किरण मजूमदार-शॉ के इस बयान पर सोशल मीडिया पर तेज प्रतिक्रिया आई. खासतौर पर बेंगलुरु के लोगों ने भी शहर की दुर्दशा को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की.
एक यूजर ने लिखा, 'सरकार के पास नया और सुंदर बेंगलुरु बनाने का मौका था, लेकिन आज शहर सिर्फ कंक्रीट का जंगल बन गया है ट्रैफिक और कचरे की समस्या हर तरफ है.' एक और यूजर ने टिप्पणी की, 'शहरी योजना विभाग तो जैसे खत्म ही हो चुका है. बेंगलुरु की सड़कें अब पार्किंग लॉट बन चुकी हैं. ना हाउसिंग की कोई सीमा है, ना पब्लिक स्पेस की कोई सोच.'
तीसरे यूजर ने कड़वा सच बयान करते हुए लिखा, 'पिछले 15-20 साल से स्मार्ट सिटी की बात हो रही है, लेकिन आज भी बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं.'
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