Waqf Amendment Protest: वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के लागू होने के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं. विभिन्न राज्यों में विपक्षी दल और मुस्लिम संगठन इस कानून को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं. इस बीच, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की झारखंड इकाई ने वक्फ संशोधन के विरोध में एक बड़े आयोजन की घोषणा की है. बोर्ड ने झारखंड में 22 जून, 2025 को रांची के बरियातू पहाड़ी मैदान में 'तहफ्फुज ए औकाफ कॉन्फ्रेंस' आयोजित करने का फैसला किया है. इसकी तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो चुकी हैं.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की झारखंड इकाई ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस आयोजन की जानकारी दी. संयोजक ने कहा, "आजादी के बाद से अब तक कई बार वक्फ संशोधन किया गया है।" उन्होंने आगे बताया कि इस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और इस कानून के खिलाफ जनजागरूकता फैलाना है। बोर्ड ने इस आयोजन को शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से आयोजित करने की योजना बनाई है, जिसमें विभिन्न समुदायों के लोग शामिल होंगे।
वक्फ की आत्मा को खत्म करने की साजिश?
AIMPLB के पदाधिकारियों ने इस कानून को वक्फ की मूल भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा, "कभी किसी ने वक्फ की आत्मा को मारने की कोशिश नहीं की। लेकिन वक्फ संशोधन 2025 वक्फ की आत्मा को खत्म करने वाला कानून है। ये बिलकुल वैसे है जैसे एक खूबसूरत थैले में सांप रखा जिसने भी उसमें हाथ डाला, वह मारा गया। इसी तरह वक्फ को मारने की साजिश है।" बोर्ड ने इस कानून को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सामाजिक हितों पर हमला करार दिया है.
वक्फ एक्ट का संसदीय सफर और विवाद
वक्फ (संशोधन) विधेयक को 2 अप्रैल, 2025 को लोकसभा में 288 के मुकाबले 232 वोटों से और 3 अप्रैल को राज्यसभा में 128 के मुकाबले 95 वोटों से पारित किया गया था। 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे मंजूरी दी, जिसके बाद केंद्र सरकार ने गजट नोटिफिकेशन जारी किया। हालांकि, इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई है. AIMPLB ने 11 अप्रैल से देशव्यापी 'वक्फ बचाव अभियान' शुरू किया, जिसमें शांतिपूर्ण प्रदर्शन और हस्ताक्षर अभियान शामिल हैं.
सरकार का दावा और विपक्ष का विरोध
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, "वक्फ कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों में भेदभाव, दुरुपयोग और अतिक्रमण को रोकना है।" सरकार का दावा है कि यह कानून पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा। दूसरी ओर, विपक्षी दल और AIMPLB इसे धार्मिक स्वायत्तता पर हमला मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट में इसकी वैधता को लेकर सुनवाई 15 अप्रैल को प्रस्तावित है.