Jharkhand Assembly Elections: एक समय था जब सहारा ग्रुप देश के शीर्ष उद्योगों में शुमार था. सहारा एयरलाइंस, सहारा मीडिया, सहारा होम्स, और कई अन्य क्षेत्रों में सहारा का वर्चस्व था. सहारा ने चिटफंड योजना की शुरुआत की थी, जिसमें लाखों भारतीयों ने अपनी मेहनत की कमाई का निवेश किया था. खासतौर पर यह योजना समाज के गरीब वर्ग में लोकप्रिय हुई, जिन्होंने अपनी रोजाना की कमाई से 10 रुपए से लेकर 100 रुपए तक की छोटी-छोटी रकम जमा की थी, ताकि वे बेहतर रिटर्न पा सकें और भविष्य को सुरक्षित बना सकें. लेकिन जब सहारा ग्रुप ने इन निवेशकों का पैसा लौटाने से इंकार कर दिया, तो उसकी मुश्किलें बढ़ने लगीं और सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया.
सुप्रीम कोर्ट ने सहारा ग्रुप को निवेशकों से 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने का आदेश दिया. इस आदेश के बाद भी सहारा की ओर से भुगतान में विफलता के चलते, 4 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रत रॉय को जेल भेज दिया और इसके बाद सहारा ग्रुप की मुश्किलें बढ़ती गईं.
फर्जीवाड़े का खुलासा
सहारा ग्रुप के फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ, जब 'रोशन लाल' नाम के एक व्यक्ति ने नेशनल हाउसिंग बैंक (NHB) को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि सहारा ने रियल एस्टेट और हाउसिंग निवेश कंपनियों के बॉन्ड नियमों के अनुसार जारी नहीं किए. इस पत्र को बाद में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) को भेजा गया, और इसके बाद मामले ने तूल पकड़ा.
सुब्रत रॉय ने बाद में मीडिया के सामने यह दावा किया था कि उनके द्वारा भारत के प्रधानमंत्री के बारे में एक विवादास्पद बयान देने के कारण ही देश की शीर्ष एजेंसियों ने उनके खिलाफ कार्रवाई की. रॉय का कहना था कि उन्होंने बयान दिया था कि 'भारत का प्रधानमंत्री भारतीय होना चाहिए, न कि इटली का', जिसके बाद सहारा के खिलाफ कार्रवाई तेज हो गई.
यूपीए सरकार और सहारा की पैठ
रिपोर्ट्स के अनुसार, सहारा की चिटफंड योजना को यूपीए सरकार के दौरान बढ़ावा मिला था. 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉर्प लिमिटेड के खिलाफ कार्रवाई करते हुए इसकी जमा योजना पर रोक लगा दी और सहारा से निवेशकों का पैसा लौटाने को कहा. सुब्रत रॉय ने खुद यह आरोप लगाया था कि जब सहारा ने अपनी योजना शुरू की थी, तब देश के वित्त मंत्री एक ही व्यक्ति थे, और जब इस योजना के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई, तब भी वही मंत्री थे. रॉय ने यह सवाल उठाया कि आखिर एक ही मंत्री होने के बावजूद उनके विचार में इतना बदलाव कैसे आया.
रिपोर्ट्स के अनुसार, यूपीए सरकार के समर्थन से सहारा की चिटफंड योजना फैलने लगी, और इस दौरान देश के गरीब वर्ग ने अपनी मेहनत की कमाई इस योजना में निवेश की. हालांकि, सत्ता परिवर्तन के बाद केंद्र में मोदी सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया.
मोदी सरकार का वादा: निवेशकों को लौटाए जाएंगे पैसे
मोदी सरकार ने सहारा के निवेशकों से वादा किया है कि उन्हें उनका पैसा पूरी तरह लौटाया जाएगा. सरकार ने इस संबंध में एक खाका तैयार किया है और निवेशकों से आवेदन लेने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. भाजपा ने यह दावा किया है कि सहारा के निवेशकों की पाई-पाई वापस की जाएगी और इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास किया है.
झारखंड विधानसभा चुनाव के संदर्भ में भाजपा ने इस मुद्दे को प्रमुख चुनावी वादे के रूप में प्रस्तुत किया है. पार्टी का मानना है कि इस वादे के कारण उसे झारखंड चुनाव में बड़ा फायदा हो सकता है. भाजपा के नेता इस मुद्दे को ‘गेमचेंजर’ मानते हुए प्रचारित कर रहे हैं, ताकि वे वोटरों का समर्थन जुटा सकें.