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India Daily

Operation Sindoor Row: ऑपरेशन सिंदूर कमेंट मामले में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान को 'सुप्रीम' राहत, हरियाणा पुलिस को झटका

सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान को सुप्रीम कोर्ट से ऑपरेशन सिंदूर पर सोशल मीडिया पर पोस्ट मामले में बड़ी राहत दी है. हरियाणा पुलिस ने भी एक मामले में उनके खिलाफ क्लोजर रिपोर्ट की जानकारी देश की टॉप कोर्ट को दी.

 Ashoka University Professor Ali Khan Mahmudabad arrest
Courtesy: Social media

सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान को बड़ी राहत दी है. देश की टॉप अदालत ने ऑपरेशन सिंदूर पर सोशल मी़डिया पोस्ट मामले में उनके खिलाफ दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लेने से ट्रायल कोर्ट को रोका है. प्रोफेसर अली खान के खिलाफ पुलिस ने दो मामले दर्ज किए हैं. सोमवार को कोर्ट ने उनके खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी.

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बागजी की बेंच ने हरियाणा पुलिस की विशेष जांच दल (एसआईटी) से यह भी कहा कि वह अगली सुनवाई तक महमूदाबाद के खिलाफ आरोप तय नहीं कर सकती है. इस सुनवाई के दौरान हरियाणा पुलिस ने कोर्ट को यह भी बताया कि उसने महमूदाबाद के खिलाफ दर्ज एक मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी है.

प्रोफेसर ने पोस्ट पर क्या लिखा था?

ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को केंद्र सरकार द्वारा चुने जाने की अशोका यूनिविर्सिटी के प्रोफेसर अली खान ने आलोचना की थी. इसके बाद इन पोस्ट के लिए उनकी गिरफ्तारी भी की गई थी. तीन दिन बाद उन्हें इस शर्त पर सुप्रीम कोर्ट से जमानत दी गई थी कि वो ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सोशल मीडिया पर कोई भी पोस्ट नहीं डालेंगे. इसके अलावा इसे लेकर वो न कोई भाषण देंगे. उनसे अपना पासपोर्ट जमा करने के निर्देश भी दिए गए थे.

सेना ने चलाया था ऑपरेशन सिंदूर

कश्मीर में पहलगाम में आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने सीमा पार पीओके में आतंकी ठिकानों को तबाह करने के लिए केंद्र सरकार के आदेश के बाद भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया. मई में चलाए गए इस ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध जैसे हालात बन गए थे. हालांकि बाद में दोनों देश सीजफायर पर सहमत हो गए थे.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बाद में दी ढील

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बाद में प्रोफेसर की जमानत की शर्तो में ढील दी थी. उनसे विचाराधीन मामले को छोड़कर पोस्ट, लेख लिखने और कोई भी राय व्यक्त करने की अनुमति दे दी. 28 मई को मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि प्रोफेसर के बोलने और अभिव्यक्ति के अधिकार में कोई बाधा नहीं है, लेकिन उन्हें अपने खिलाफ मामलों के बारे में ऑनलाइन कुछ भी शेयर करने से रोक दिया गया.