छत्तीसगढ़ में 31 नक्सलियों ने डाले हथियार, 81 लाख के इनामी समेत कई बड़े नाम विकास की मुख्य धारा में हुए शामिल
छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सल विरोधी अभियान को बड़ी सफलता मिली है. 81 लाख रुपये के इनामी समेत 31 सक्रिय नक्सलियों ने बुधवार को आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने का ऐलान किया. आत्मसमर्पण करने वालों में कई बड़े नाम शामिल हैं, जो लंबे समय से पुलिस की वांछित सूची में थे. पुलिस और शासन की नक्सल उन्मूलन व पुनर्वास नीति के चलते नक्सलियों का मनोबल लगातार टूट रहा है.
बस्तर संभाग में नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों और सरकार की लगातार कार्रवाई रंग ला रही है. बुधवार को 31 खूंखार नक्सलियों ने हथियार डाल दिए, जिन पर 81 लाख रुपये का इनाम घोषित था. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली बीजापुर, गंगालूर, पामेड़, नैमेड, भैरमगढ़ और भोपालपट्टनम जैसे इलाकों में वर्षों से सक्रिय थे.
पुलिस के प्रेस नोट के अनुसार आत्मसमर्पण करने वालों में सोनू हेमला, किल्लू पुनेम, कोसी कुंजाम, मोटी हेमला, बुधरी कुंजाम और झंगु पोयाम जैसे बड़े नाम शामिल हैं. इनमें कई नक्सली लंबे समय से पुलिस की सूची में वांछित थे और दर्जनों वारदातों में सक्रिय भूमिका निभा चुके थे. इस सरेंडर लिस्ट में डीवीसीएम, एसीएम, एरिया कमेटी और सीपीआई (माओवादी) के कई कैडर से जुड़े सदस्य शामिल हैं.
नक्सलियों ने क्यों डाले हथियार?
सुरक्षा बलों के लगातार ऑपरेशन, बस्तर में विकास की रफ्तार और संगठन के भीतर बढ़ते मतभेद नक्सलियों के हथियार डालने की बड़ी वजह माने जा रहे हैं. सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाओं के अंदरूनी इलाकों तक पहुंचने से लोगों की सोच बदली है. पुलिस अधिकारियों के अनुसार, मानसिक और आर्थिक शोषण के कारण भी नक्सलियों का भरोसा संगठन से उठ रहा है.
आंकड़े बताते हैं सफलता
वर्ष 2025 की शुरुआत से अब तक कुल 331 नक्सली घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें 307 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, जबकि 132 मुठभेड़ों में मारे गए. पिछले साल 2024 में 496 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था और 190 नक्सली कार्रवाई में ढेर हुए थे. ये आंकड़े बताते हैं कि नक्सली संगठन धीरे-धीरे कमजोर पड़ रहे हैं.
पुनर्वास योजना का असर
बीजापुर पुलिस अधीक्षक डॉ. जितेंद्र कुमार यादव ने कहा कि सरकार की पुनर्वास और 'नवजीवन योजना' नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित कर रही है. इस योजना के तहत आत्मसमर्पण करने वाले प्रत्येक नक्सली को 50-50 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की सुविधाएं दी जाती हैं. यही वजह है कि नक्सल अब हिंसा छोड़कर सम्मानजनक जीवन की राह चुन रहे हैं.
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