Bihar Assembly Election 2025: बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों के बीच महागठबंधन ने बड़ा दांव खेला है. एनडीए के पूर्व सहयोगी और 'सन ऑफ मल्लाह' कहे जाने वाले मुकेश सहनी को गठबंधन का डिप्टी सीएम चेहरा घोषित कर दिया गया है.
इस घोषणा के साथ ही बिहार की राजनीतिक हवा में नया मोड़ आ गया है, क्योंकि सहनी की एंट्री से महागठबंधन को उन वर्गों में पैठ बढ़ाने की उम्मीद है, जिन्हें अब तक एनडीए अपना परंपरागत वोट बैंक मानता रहा है.
44 वर्षीय मुकेश सहनी, जो कभी बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी नैया खेते नजर आए थे, अब उसी पार्टी को चुनौती देने वाले गठबंधन के अहम चेहरा बन गए हैं. गुरुवार को तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेताओं की मौजूदगी में उन्हें डिप्टी सीएम उम्मीदवार घोषित किया गया. ऐलान के तुरंत बाद सहनी ने मंच से कहा 'बीजेपी को जब तक तोड़ नहीं देंगे, तब तक छोड़ेंगे नहीं.'
सहनी ने बीजेपी पर अपनी पार्टी तोड़ने और विधायकों को लुभाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि 'अब समय आ गया है जब हम गंगा जल की सौगंध पूरी करेंगे और बिहार से बीजेपी को सत्ता से बाहर करेंगे.'
भले ही निषाद समुदाय की बिहार में आबादी करीब 2.5 प्रतिशत ही हो, लेकिन यह तबका गंगा किनारे के लगभग सभी जिलों में प्रभाव रखता है. मल्लाह, केवट और निषाद वोटों में पकड़ रखने वाले सहनी के जुड़ने से महागठबंधन को सामाजिक संतुलन साधने में मदद मिलेगी.
महागठबंधन के रणनीतिकार मानते हैं कि सहनी का चेहरा पिछड़ों और मछुआरा वर्ग में एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में उभरेगा, खासकर उन सीटों पर जहां एनडीए का आधार कमजोर हुआ है.
सुपौल जिले के मछुआरा परिवार में जन्मे मुकेश सहनी ने गरीबी और पिछड़ेपन को बहुत करीब से देखा है. उन्होंने 2015 में बीजेपी का साथ दिया था और पीएम मोदी ने उन्हें 'निषाद समाज के चेहरे' के रूप में मंच से सराहा था. लेकिन वादों के पूरे न होने और निषाद समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा न मिलने से उन्होंने 2018 में अपनी पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) की स्थापना की.
2020 में एनडीए के साथ मिलकर चार सीटें जीतने के बाद सहनी नीतीश सरकार में पशुपालन मंत्री बने, लेकिन 2022 में बगावत के चलते पद से हटा दिए गए. अब, तीन साल बाद, वही सहनी महागठबंधन में लौटकर बीजेपी को सीधी चुनौती दे रहे हैं.
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों 6 और 11 नवंबर को होंगे, जबकि नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे. एनडीए में बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास), हम (सेक्युलर) और आरएलएम शामिल हैं. वहीं महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई-एमएल (लिबरेशन), सीपीआई, सीपीएम और वीआईपी का गठजोड़ है.
सहनी का यह नया रोल न सिर्फ महागठबंधन की रणनीति को मजबूती देता है, बल्कि बीजेपी के लिए भी सिरदर्द साबित हो सकता है, खासकर उन इलाकों में जहां मल्लाह और पिछड़े वर्गों का वोट निर्णायक है.