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'वोट चोरी' से सीसीटीवी तक... पढ़िए बिहार विधानसभा चुनाव से जुड़े पांच विवाद

मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के कार्यभार संभालने के बाद से विपक्षी दलों ने आयोग पर बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाने, डेटा एक्सेस पर अंकुश लगाने, सीसीटीवी फुटेज रोकने और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की विश्वसनीयता पर सवालों से बचने का आरोप लगाया है. इन सभी आरोपों का चुनाव आयोग ने आक्रामक बचाव किया है.

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Edited By: Gyanendra Sharma
Bihar Assembly Elections
Courtesy: Social Media

Bihar Assembly Elections: बिहार विधानसभा चुनाव दो फेज में कराए जाएंगे. 6 और 11 नवंबर को वोटिंग और 14 नवंबर को नतीजे आएंगे. मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के कार्यभार संभालने के बाद से  विपक्षी दलों ने आयोग पर बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम हटाने, डेटा एक्सेस पर अंकुश लगाने, सीसीटीवी फुटेज रोकने और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की विश्वसनीयता पर सवालों से बचने का आरोप लगाया है. इन सभी आरोपों का चुनाव आयोग ने आक्रामक बचाव किया है. 

2024 के लोकसभा चुनावों के बाद यह पहला बड़ा चुनावी अभ्यास होगा और कुमार के नेतृत्व में पहला राज्य चुनाव होगा. लेकिन जो आम तौर पर एक नियमित चुनाव-पूर्व घोषणा होती है, वह अब संस्थागत विश्वास पर एक राजनीतिक विवाद का विषय बन गई है, क्योंकि विपक्षी नेता चुनाव आयोग को "समझौतावादी" कहते हैं और आयोग उन पर पक्षपातपूर्ण लाभ के लिए लोकतंत्र में विश्वास को कम करने" का आरोप लगाता है.

मतदाता सूची हटाने के आरोप

इस विवाद का केंद्र बिहार की मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) है, जिसके परिणामस्वरूप मतदाता सूची से 68 लाख से ज़्यादा नाम हटा दिए गए हैं दो दशकों में ऐसा पहला मामला. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि एसआईआर के कारण लाखों असली मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं, जिसका महिलाओं, अल्पसंख्यकों और प्रवासी मज़दूरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. कांग्रेस और राजद नेताओं ने चुनाव आयोग पर मतदाता सूची शुद्धिकरण के बहाने "शुद्धिकरण" करने का आरोप लगाया है. अपनी मतदाता अधिकार यात्रा के दौरान, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे "बिहार के लिए विशेष पैकेज" और "वोट चोरी का एक नया रूप" बताया था.

आयोग ने आरोपों को "निराधार और अपमानजनक" बताते हुए खारिज कर दिया है और ज़ोर देकर कहा है कि डुप्लिकेट, पुरानी और माइग्रेटेड प्रविष्टियों को हटाने के लिए संशोधन ज़रूरी था. मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा है कि यह संशोधन बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था और चुनावों के बाद इसे टालने से "मतदान सूचियों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचेगा". सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में, चुनाव आयोग ने कहा कि ड्राफ्ट सूची से नाम हटाने का मतलब स्थायी रूप से हटाना नहीं है, और बूथ स्तर का विस्तृत डेटा सभी राजनीतिक दलों के साथ साझा किया गया था. 

वोट चोरी' अभियान और मतदाता डेटा तक पहुंच

"वोट चोरी" का मुद्दा एक राष्ट्रीय अभियान का रूप ले चुका है, जहांप कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव आयोग जानबूझकर मशीन-पठनीय प्रारूप में डिजिटल मतदाता सूची तक पहुँच को प्रतिबंधित कर रहा है, जिससे राजनीतिक पार्टियाँ विलोपन और दोहराव की पुष्टि नहीं कर पा रही हैं. गांधी ने कहा है कि कांग्रेस कई राज्यों में फैले "सुनियोजित मतदाता दमन प्रयास" पर एक "श्वेत पत्र" जारी करने की योजना बना रही है.

चुनाव आयोग का जवाब: आयोग ने इन आरोपों को "राजनीति से प्रेरित" बताया है और दोहराया है कि सभी मान्यता प्राप्त दलों को मतदाता सूचियाँ कानून द्वारा निर्धारित प्रारूप में ही मिलती हैं. उसने कहा कि गोपनीयता और डेटा सुरक्षा कानून उसे ऐसा कच्चा डेटा जारी करने से रोकते हैं जिससे प्रोफ़ाइलिंग या दुरुपयोग हो सकता है. उसने कहा, "आयोग स्वतंत्र रूप से काम करता है और चुनावों की पवित्रता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है."

ईवीएम और सीसीटीवी विवाद

विपक्ष ने ईवीएम की विश्वसनीयता और मतगणना में पारदर्शिता को लेकर अपने लंबे समय से चले आ रहे संदेहों को भी फिर से उजागर कर दिया है. कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और वामपंथी दलों ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग द्वारा ईवीएम के कच्चे डेटा, बैटरी लॉग और मतगणना केंद्रों से पूरी सीसीटीवी फुटेज जारी करने से इनकार करने से परिणामों की स्वतंत्र पुष्टि में बाधा आ रही है. उन्होंने सवाल उठाया है कि स्ट्रांग रूम और मतदान केंद्रों से सीसीटीवी फुटेज 45 दिनों के बाद क्यों हटा दिए जाते हैं, और तर्क दिया है कि इससे चुनाव के बाद की ऑडिटिंग सीमित हो जाती है.

सर्वोच्च न्यायालय की जांच और स्वतंत्रता के प्रश्न

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता भी अदालत में परखी जा रही है. सर्वोच्च न्यायालय एसआईआर प्रक्रिया और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव करने वाले हालिया कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है—चयन समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश की जगह प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक मंत्री को नियुक्त करना. विपक्ष ने इस संशोधन को "चुनाव आयोग पर राजनीतिक कब्ज़ा" बताया है और आरोप लगाया है कि यह संस्थागत स्वतंत्रता को कमज़ोर करता है.