यह जानकर असहजता होती है कि एक साधारण सा मल परीक्षण किसी गंभीर मरीज की जीवन-रक्षा संभावना बता सकता है, लेकिन नए शोध यही संकेत दे रहे हैं.
वैज्ञानिकों ने पाया है कि आंतों में रहने वाले सूक्ष्मजीव और उनके द्वारा बनाए गए रसायन यह समझने में मदद कर सकते हैं कि शरीर गंभीर बीमारी से जूझने की क्षमता खो रहा है या नहीं. ये शुरुआती संकेत डॉक्टरों को तेजी से इलाज रणनीति बदलने में मदद कर सकते हैं.
हालिया अध्ययनों में पाया गया है कि गंभीर संक्रमण, शॉक या सांस संबंधी समस्याओं से जूझ रहे मरीजों के मल में मौजूद कुछ विशेष मेटाबोलाइट पैटर्न उनकी 30 दिनों के भीतर मृत्यु जोखिम से गहराई से जुड़े होते हैं. इससे यह समझ में आता है कि मल एक शुरुआती चेतावनी की तरह काम कर सकता है.
आंतों में मौजूद खरबों बैक्टीरिया पाचन, प्रतिरक्षा और सूजन नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब गंभीर बीमारी से यह संतुलन बिगड़ता है, तो शरीर की रक्षा कमजोर पड़ने लगती है. कई शोध बताते हैं कि गट माइक्रोबायोम की विविधता कम होते ही मरीजों का रिकवरी चांस भी घट जाता है.
ScienceAlert द्वारा हाइलाइट किए गए नए शोध में वैज्ञानिकों ने एक माप विकसित किया है- ‘मेटाबॉलिक डिस्बायोसिस स्कोर’. यह स्कोर मल में मौजूद कई रासायनिक संकेतकों का विश्लेषण करके बताता है कि मरीज का शरीर गंभीर बीमारी से लड़ पा रहा है या नहीं. शुरुआती अध्ययन में इस स्कोर ने मृत्यु जोखिम का काफी सटीक अनुमान दिया.
यदि बड़े अध्ययनों में यह तकनीक विश्वसनीय साबित हुई, तो आईसीयू में मल परीक्षण नियमित मूल्यांकन का हिस्सा बन सकता है. इससे डॉक्टर उच्च जोखिम वाले मरीजों को जल्दी पहचान सकेंगे, इलाज की तीव्रता बदल सकेंगे और पोषण व एंटीबायोटिक रणनीतियां मरीज के गट स्वास्थ्य के अनुसार तय कर सकेंगे.
हालांकि यह शोध केवल गंभीर मरीजों पर केंद्रित है, पर विशेषज्ञ मानते हैं कि रोजमर्रा में गट स्वास्थ्य मजबूत रखना दीर्घकालिक लाभ देता है. फाइबरयुक्त भोजन, दही जैसे फर्मेंटेड फूड, पर्याप्त पानी, कम तनाव और नियमित व्यायाम आंतों को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं.