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कौन हैं श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके? जानिए इनसे जुड़ी हर जरूरी बात

Anura Kumara Dissanayake: जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल हुई है. उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी सजिथ प्रेमदासा को 42% वोटों के साथ हराया जबकि प्रेमदासा को 23% और मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को केवल 16% वोट मिले हैं. उनके जीवन से जुड़े अहम पहलुओं के लिए जानने के लिए इस लेख को पढ़ें.

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Edited By: India Daily Live
Anura Kumara Dissanayake
Courtesy: Social Media

Anura Kumara Dissanayake: जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) के व्यापक गठबंधन नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को देश के आर्थिक संकट के बाद हुए पहले चुनावों के बाद श्रीलंका के अगले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया है. दिसानायके को अपने करीबी प्रतिद्वंद्वी सजिथ प्रेमदासा के मुकाबले लगभग 42% वोट मिले. वहीं, सजित को 23 फीसदी मत मिले और वर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे केवल 16 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे. 

मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने रविवार को श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर ली है. उन्होंने मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को हराया है.  श्रीलंका के चुनाव आयोग ने औपचारिक रूप से घोषणा करते हुए कहा कि  55 वर्षीय दिसानायके ने शनिवार को हुए चुनाव में 42.31% वोट हासिल किए, जबकि विपक्षी नेता सजीथ प्रेमदासा दूसरे स्थान पर रहे.

 मार्क्सवादी नेता  अनुरा कुमारा दिसानायके के जीवन से जुड़े अनसुने पहलुओं के बारे में विस्तार से जानने के लिए यह पूरा लेख पढ़ें. 

छात्र राजनीति में हुए सक्रिय 

दिसानायके का जन्म देश की राजधानी कोलंबो से लगभग 170 किलोमीटर दूर अनुराधापुरा जिले के थम्बुट्टेगामा गांव में एक निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर और उनकी माँ एक गृहिणी थीं.वे अपने बेटे को पढ़ाने में कामयाब रहे. दिसानायके ने  केलानिया विश्वविद्यालय से विज्ञान की डिग्री हासिल की. छात्र राजनीति में दिसानायके की सक्रिय भागीदारी ने उन्हें 1987 और 89 के बीच तत्कालीन राष्ट्रपतियों जयवर्धने और आर प्रेमदासा के साम्राज्यवादी और पूंजीवादी शासन के खिलाफ जेवीपी के सरकार विरोधी सशस्त्र विद्रोह में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.

राजनीतिक ब्यूरो के बने सदस्य

मार्क्सवादी नेता 1995 में सोशलिस्ट स्टूडेंट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय आयोजक के पद पर पहुंचे और बाद में उन्हें जेवीपी की केंद्रीय कार्यसमिति में नियुक्त किया गया. साल 1998 में वे जेवीपी के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य बन गए.  2000 में दिसानायके राष्ट्रवादी सूची के माध्यम से राष्ट्रपति चुनाव लड़कर संसद के सदस्य बने.  जबकि जेवीपी ने राष्ट्रपति कुमारतुंगा के प्रशासन का समर्थन किया उनकी पार्टी ने बाद में 2002 में तमिल विद्रोही समूह LTTE के साथ शांति वार्ता का विरोध करने के लिए सिंहली राष्ट्रवादियों के साथ गठबंधन किया और कोलंबो में सिंहली-प्रभुत्व वाली सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया.

बौद्ध धर्म का स्थान सर्वोच्च 

जेवीपी 2004 के राष्ट्रपति चुनावों में महिंदा राजपक्षे की यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (UPFA) के साथ गठबंधन करके प्रमुखता में आई.  इस मोर्चे ने एलटीटीई के साथ युद्धविराम विरोधी रुख पर स्पष्ट रूप से अभियान चलाया. बौद्ध भिक्षुओं के बीच एक चुनाव अभियान को संबोधित करते हुए दिसानायके ने उन्हें आश्वासन दिया कि संविधान का अनुच्छेद 9, जो बौद्ध धर्म को सर्वोच्च स्थान की गारंटी देता है, उसे 'ईश्वरीय संरक्षण' प्राप्त है और यह उन्हें इसमें किसी भी संशोधन के खिलाफ गारंटी देता है. जेवीपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनपीपी ने भी अनुच्छेद 9 की रक्षा करने की प्रतिबद्धता जताई है.

भारत विरोधी है रुख 

दिसानायके की जेवीपी ने भारत से आए तमिल मूल के एस्टेट कर्मचारियों की निंदा करते हुए उन्हें भारतीय विस्तारवाद का साधन बताया था.  पार्टी ने व्यापार पर व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (सीईपीए) का भी विरोध किया है जो दोनों देशों के बीच अधिक व्यापार और निवेश को बढ़ावा देगा. नए निर्वाचित राष्ट्रपति ने कच्चातीवु द्वीप को भारत को वापस देने के किसी भी प्रयास का विरोध किया है और कहा है कि इसे किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने दिया जा सकता है.  उल्लेखनीय है कि नई दिल्ली ने इस साल की शुरुआत में दिसानायके और जेवीपी प्रतिनिधिमंडल को आधिकारिक दौरे के लिए आमंत्रित करके जेवीपी से संपर्क भी साधा है.

तमिलों को सत्ता के हस्तांतरण का विरोध

दिसानायके की जेवीपी ने तमिलों को सत्ता के किसी भी हस्तांतरण का विरोध किया है.  उनकी पार्टी ने 1987 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा हस्ताक्षरित भारत-श्रीलंका समझौते का विरोध किया है. पार्टी ने श्रीलंका के संविधान में 13वें संशोधन का भी विरोध किया है, जिसके तहत देश के तमिल-बहुल उत्तर-पूर्व में भूमि राजस्व और पुलिस पर अधिक नियंत्रण देने के लिए प्रांतीय परिषदों का गठन किया गया था.  जेवीपी ने एलटीटीई और उसके नेता प्रभाकरण के खिलाफ क्रूर सैन्य अभियान के दौरान श्रीलंकाई सशस्त्र बलों का समर्थन किया है.  दिसानायके ने श्रीलंकाई सेना के युद्ध अपराधों की अंतर्राष्ट्रीय जांच के किसी भी प्रयास का लगातार विरोध किया है. 

आईएमएफ बेलआउट पर असहमति

श्रीलंका को अपने 3 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज में से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 350 मिलियन डॉलर की अगली किस्त मिलने का इंतजार है.  दिसानायके ने बार-बार कहा है कि उनकी पार्टी समझौते की शर्तों पर फिर से बातचीत करने की कोशिश करेगी, जिसके खिलाफ मौजूदा सरकार ने चेतावनी दी है.