menu-icon
India Daily

कौन हैं बांग्लादेशी बाउल सिंगर अबुल सरकार? जिसकी गिरफ्तारी पर बांग्लादेश में मचा बवाल

बांग्लादेश में बाउल सिंगर अबुल सरकार की गिरफ्तारी के बाद सिविल सोसाइटी और कल्चरल एक्टिविस्ट्स ने धार्मिक कट्टरता और कलाकारों पर हमलों की निंदा की. प्रशासन की निष्क्रियता और सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे को भी उजागर किया गया.

auth-image
Edited By: Kanhaiya Kumar Jha
baul singer abul sarkar India Daily
Courtesy: X/@fixerBD

नई दिल्ली: बांग्लादेश में प्रसिद्ध ‘बाउल’ सिंगर अबुल सरकार की गिरफ्तारी ने देश में सिविल सोसाइटी और कल्चरल एक्टिविस्ट्स के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है. सोमवार को 250 से अधिक नागरिकों ने एक संयुक्त बयान जारी कर इस गिरफ्तारी और हाल के दिनों में धार्मिक समूहों द्वारा कलाकारों पर हो रहे हमलों की आलोचना की.

धार्मिक तनाव और कट्टरपंथ का बढ़ता खतरा

साइन करने वालों का कहना है कि हाल की घटनाओं से स्पष्ट हो गया है कि शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद धार्मिक कट्टरता में वृद्धि हुई है. बयान में आरोप लगाया गया कि एक विशेष समूह ने खुद को इस्लाम का 'एक्सक्लूसिव रिप्रेजेंटेटिव' घोषित कर देशभर में बड़े पैमाने पर अभियान चलाया है. इस समूह ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों, संगीत, नृत्य, थिएटर और मेलों में बाधा डालने के साथ-साथ लोगों की भावनाओं को बार-बार ठेस पहुंचाकर दमघुटे माहौल का निर्माण किया.

हिंसा का पैटर्न और आरोप

सिविल सोसाइटी ने बताया कि हिंसा के पैटर्न में 200 से अधिक दरगाहों को तोड़ना, लोगों को मुर्तद या काफिर कहकर निशाना बनाना, मृतकों को खोदकर जलाना, बाउल और फकीरों के बाल काटना और महिलाओं के कपड़ों और स्वतंत्र आवाजाही पर पाबंदी लगाना शामिल है. बयान में कहा गया कि यह सब अलग सोच रखने वाले लोगों को दबाने की स्पष्ट रणनीति का हिस्सा है.

पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता

साइन करने वालों ने आरोप लगाया कि कानून लागू करने वाली एजेंसियां अक्सर हिंसक समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने में असफल रही हैं. कई मामलों में अधिकारियों ने अपराधियों को प्रेशर ग्रुप्स कहकर घटित हिंसा को कम करके आंका और पीड़ितों के खिलाफ मनगढ़ंत मुकदमे भी चलाए.

अबुल सरकार की गिरफ्तारी और उसके बाद की हिंसा

पुलिस की डिटेक्टिव ब्रांच ने अबुल सरकार को मदारीपुर में एक म्यूजिकल इवेंट के दौरान गिरफ्तार किया. उन पर जानबूझकर अशांति भड़काने और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया. उन्हें मानिकगंज कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. दो दिन बाद, तौहीदी जनता समूह से जुड़े एक्टिविस्ट ने ढाका के उत्तरी इलाके में सरकार की रिहाई की मांग के दौरान कलाकारों पर हमला किया, जिसमें चार लोग घायल हुए.

कल्चरल और सिविल एक्टिविस्ट्स की प्रतिक्रिया

कई कल्चरल जानकारों और एक्टिविस्ट्स ने इस स्थिति को धार्मिक फासीवाद के उभरते रूप के रूप में देखा. लेफ्टिस्ट स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन और अन्य सांस्कृतिक समूहों ने ढाका और जहांगीरनगर यूनिवर्सिटी में टॉर्चलाइट मार्च निकालकर इस हिंसा की निंदा की. बाउल कलाकारों ने भी नेशनल प्रेस क्लब के बाहर सरकार की रिहाई की मांग को लेकर प्रदर्शन किया.