भारत का सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेक्टर, जो वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और एआई-आधारित ऑटोमेशन की बढ़ती स्वीकार्यता से पहले ही जूझ रहा है, अब अमेरिका के ट्रंप प्रशासन द्वारा सॉफ्टवेयर निर्यात पर संभावित टैरिफ की आशंका से चिंतित है. यह कदम भारत के 283 अरब डॉलर के तकनीकी सेवा आउटसोर्सिंग उद्योग, जिसमें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इन्फोसिस, एचसीएलटेक और विप्रो जैसी प्रमुख कंपनियां शामिल हैं, इनके लिए गंभीर चुनौतियां पेश कर सकता है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका, भारतीय आईटी कंपनियों का सबसे बड़ा बाजार है, जहां से ये कंपनियां अपनी इनकम का 60% से ज्यादा हिस्सा कमाती हैं. हाल ही में ट्रंप के सीनियर कारोबार सलाहकार पीटर नवारो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में आउटसोर्सिंग और विदेशी रिमोट कर्मचारियों पर टैरिफ लगाने की बात कही.
भारतीय आईटी क्षेत्र पर क्यों पड़ सकता है असर?
इसके अलावा, अमेरिकी रूढ़िवादी टिप्पणीकार जैक पॉसोबिएक ने पोस्ट किया, "देशों को अमेरिका को रिमोट रूप से सेवाएं प्रदान करने के विशेषाधिकार के लिए उसी तरह भुगतान करना चाहिए जैसे वस्तुओं के लिए किया जाता है. इसे सभी उद्योगों पर लागू करना चाहिए, हर देश के अनुसार आवश्यकतानुसार समायोजित करना होगा.
ऐसी पॉलिसी लागू होने से भारत और अन्य समान देशों से सेवाएं लेने वाले सभी टेक्निकल सर्विस कस्टमर पर असर पड़ सकता है. एक्सपर्ट का मानना है कि यह कदम भारतीय आईटी कंपनियों के लिए डबल टैक्सेशन का कारण बन सकता है, क्योंकि ये कंपनियां पहले से ही अमेरिका में भारी टैक्स का भुगतान करती हैं.
वीजा नियमों में सख्ती से बढ़ेगी लागत
टैरिफ के साथ-साथ वीजा नियमों में संभावित सख्ती भी भारतीय आईटी कंपनियों के लिए चुनौती बन सकती है. सख्त वीजा नियमों के कारण कंपनियों को अमेरिका या आसपास के क्षेत्रों में स्थानीय भर्ती करनी पड़ सकती है, जिससे परिचालन लागत में बढ़ोत्तरी होगी. इससे कंपनियों के लाभ मार्जिन पर दबाव पड़ सकता है, खासकर तब जब वैश्विक मांग पहले से ही कमजोर है.
क्या ट्रंप वास्तव में लगाएंगे टैरिफ?
एचएफएस ग्रुप के सीईओ फिल फर्स्ट का कहना है, "भारत के आउटसोर्सिंग क्षेत्र पर टैरिफ की चर्चा अधिक राजनीतिक संदेशवाहन है, न कि वास्तविक नीतिगत इरादा." वे आगे कहते हैं, "डिजिटल श्रम प्रवाह पर शुल्क लगाना वस्तुओं पर कर लगाने से कहीं अधिक जटिल है, अमेरिका अपनी तकनीकी अर्थव्यवस्था को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए भारत के आईटी और इंजीनियरिंग प्रतिभा पर बहुत अधिक निर्भर है, चाहे वह एच-1बी वीजा के माध्यम से ऑनसाइट हो या रिमोट डिलीवरी के जरिए."
इसके अलावा, कई तकनीकी अरबपति, जो ट्रंप प्रशासन पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं, भारत के पक्ष में हैं, क्योंकि उनके वैश्विक कारोबार भारतीय इंजीनियरिंग प्रतिभा, डिलीवरी क्षमता और बाजार पहुंच पर निर्भर हैं.
US में पहले से ही कंपनियां काफी टैक्सों का कर रही भुगतान
एवरेस्ट ग्रुप के पार्टनर युगल जोशी ने कहा, "ये कंपनियां अमेरिका में पहले से ही काफी टैक्सों का भुगतान करती हैं, इसलिए टैरिफ दोहरा टैक्सेशन होगा. यह भारत-आधारित सेवा प्रदाताओं और यहां तक कि जीसीसी (ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स) के विकास को और नुकसान पहुंचाएगा, अगर उन पर भी टैरिफ लगाया गया."