फ्रांस में सोमवार को संसद के भीतर हुआ ऐतिहासिक घटनाक्रम पूरे यूरोप का ध्यान खींच रहा है. नेशनल असेंबली में हुई वोटिंग में बैरू सरकार को 364 सांसदों ने नकार दिया, जबकि सिर्फ 194 ने समर्थन दिया.
यह पहला मौका है जब फ्रांस में किसी प्रधानमंत्री को विश्वास मत में पद गंवाना पड़ा है. अब राष्ट्रपति मैक्रों को ऐसे समय में नया राजनीतिक रास्ता खोजना है जब उनकी लोकप्रियता ऐतिहासिक स्तर पर गिर चुकी है और विपक्ष आक्रामक रूप में सामने है.
फ्रांस्वा बैरू महज नौ महीने पहले प्रधानमंत्री बने थे. उन्होंने खुद ही विश्वास मत की पहल की थी, ताकि अपने कठोर बजट प्रस्ताव के लिए संसद का समर्थन पा सकें. इस बजट में लगभग 44 अरब यूरो की बचत का लक्ष्य रखा गया था, जिससे देश के बढ़ते कर्ज को नियंत्रित किया जा सके. लेकिन संसद ने उन्हें नकार दिया और सरकार गिर गई.
बैरू ने अपने भाषण में चेतावनी दी थी कि कर्ज का बोझ फ्रांस के लिए 'जीवन के लिए खतरा' बन गया है और अब बदलाव जरूरी है. उन्होंने कहा था कि सांसद सरकार को गिरा सकते हैं, लेकिन 'सच्चाई को मिटा नहीं सकते'.
#BREAKING French government ousted in parliament confidence vote: speaker pic.twitter.com/y6sOvlUhiF
— AFP News Agency (@AFP) September 8, 2025
प्रधानमंत्री पद से बैरू की विदाई राष्ट्रपति मैक्रों के लिए नई सिरदर्दी बन गई है. 2017 से अब तक वह छठे प्रधानमंत्री खो चुके हैं, जिनमें से पांच ने सिर्फ पिछले दो वर्षों में पद छोड़ा है. अब सवाल है कि मैक्रों सातवें प्रधानमंत्री का चयन करेंगे या संसद भंग कर मध्यावधि चुनाव का ऐलान करेंगे.
एक हालिया सर्वे के मुताबिक 64% फ्रांसीसी चाहते हैं कि मैक्रों खुद इस्तीफा दें. वहीं, 77% लोग उनके कामकाज से असंतुष्ट हैं. यह मैक्रों की लोकप्रियता का सबसे निचला स्तर है. संविधान के तहत वह 2027 में तीसरी बार राष्ट्रपति पद की दौड़ में नहीं उतर सकते.
सियासी संकट के बीच फ्रांस में सामाजिक तनाव भी बढ़ रहा है. ट्रेड यूनियनों ने 18 सितंबर को देशव्यापी हड़ताल की घोषणा की है, जबकि लेफ्ट समूह 'ब्लॉक एवरीथिंग' बुधवार को विरोध प्रदर्शन करेगा. इस बीच, कट्टर दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन ने मैक्रों से तुरंत मध्यावधि चुनाव कराने की मांग की है.
मार्च में फर्जी नौकरियों के मामले में दोषी ठहराई गई ले पेन को चार साल की सजा और जुर्माना मिला था, साथ ही पांच साल के लिए चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया था. हालांकि, उनकी अपील पर सुनवाई 2026 में होगी और यदि फैसला उनके पक्ष में जाता है तो वह 2027 के राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल हो सकती हैं. ले पेन की पार्टी इस समय संसद में आक्रामक रुख में है और इसे फ्रांस के राजनीतिक भविष्य के लिए बड़ा मोड़ माना जा रहा है.