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India Daily

India China Relations: नेहरू से मोदी तक... हर प्रधानमंत्री के दौर में कैसे उतार-चढ़ाव से गुजरे भारत-चीन के संबंध, जानें रिश्तों की पूरी दास्तान

भारत-चीन संबंधों का इतिहास दोस्ती और तनाव दोनों से गुजरा है. आजादी के बाद से लेकर मौजूदा दौर तक हर प्रधानमंत्री के कार्यकाल में इन संबंधों ने अलग-अलग मोड़ देखे हैं. चलिए जानते हैं जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक भारत के प्रधानमंत्रियों के चीन के साथ कैसे संबंध रहे हैं.

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Edited By: Km Jaya
भारत-चीन संबंध
Courtesy: Social Media

India China Relations: भारत और चीन के रिश्ते हमेशा से ही उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं. आजादी के बाद से लेकर मौजूदा दौर तक हर प्रधानमंत्री के कार्यकाल में इन संबंधों ने अलग-अलग मोड़ देखे हैं. नेहरू के समय दोस्ती से शुरुआत हुई लेकिन 1962 का युद्ध रिश्तों में खटास लाया. इंदिरा गांधी और शास्त्री के कार्यकाल में तनाव रहा, जबकि राजीव गांधी और वाजपेयी ने रिश्तों को सुधारने की कोशिश की.

डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक सहयोग पर जोर दिया. नरेंद्र मोदी के समय गलवान घाटी की झड़प ने रिश्तों को बिगाड़ा, लेकिन हाल के वर्षों में शांति बहाली की कोशिशें जारी हैं. दोनों देशों के रिश्ते कभी दोस्ती, कभी तनाव और कभी युद्ध में बदलते रहे. हर प्रधानमंत्री ने अपनी नीतियों के आधार पर इस जटिल रिश्ते को संभालने का प्रयास किया. चलिए जानते हैं समय के साथ रिश्तों में कैसे आए बदलाव.

जवाहरलाल नेहरू के समय

1950 में जवाहरलाल नेहरू के समय भारत ने कम्युनिस्ट चीन को मान्यता दी और पंचशील समझौते पर 1954 में हस्ताक्षर किए. 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया गया, लेकिन तिब्बत पर कब्जा और सीमा विवाद ने हालात बिगाड़ दिए. 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ, जिसमें भारत को हार झेलनी पड़ी.

लाल बहादुर शास्त्री के समय

लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल छोटा था. भारत-पाक युद्ध के दौरान 1965 में चीन ने भारत को धमकी दी, लेकिन शास्त्री ने कड़ा रुख अपनाया और रक्षा तैयारियों को मजबूत किया.

इंदिरा गांधी के समय

इंदिरा गांधी के समय रिश्ते तनावपूर्ण रहे. 1967 में नाथू ला और चो ला में झड़पें हुईं. हालांकि, 1976 में कूटनीति से राजनयिक संबंध फिर बहाल किए गए.

राजीव गांधी के समय

1988 में राजीव गांधी ने चीन का ऐतिहासिक दौरा किया. यह 1962 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला चीन दौरा था. इस यात्रा से दोनों देशों के बीच व्यापार और कूटनीति में नया अध्याय जुड़ा.

अटल बिहारी वाजपेयी के समय

अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में चीन का दौरा किया और सीमा विवाद पर विशेष प्रतिनिधि तंत्र की शुरुआत की. नाथू ला दर्रा 2006 में खोला गया, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला. उनके कार्यकाल में रिश्ते बेहतर हुए लेकिन सीमा विवाद बना रहा.

मनमोहन सिंह के समय

मनमोहन सिंह ने भी 2008 और 2013 में अपने कार्यकाल के दौरान चीन का दौरा किया था. जिसमें आर्थिक और व्यापारिक सहयोग बढ़ा. हालांकि, 2013 में लद्दाख में चीनी घुसपैठ ने रिश्तों को बिगाड़ा, लेकिन कूटनीति से हालात संभाले गए.

नरेंद्र मोदी के समय

नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भी रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे. 2014 में शी जिनपिंग भारत आए और 2015 में मोदी चीन गए. व्यापार और सांस्कृतिक संबंध बढ़ाने की कोशिश की गई लेकिन 2020 में गलवान घाटी की हिंसक झड़प ने रिश्तों में गहरी दरार डाली. मोदी सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए सीमा पर सैन्य तैनाती बढ़ाई और चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया. 2024-25 में फिर से बैठक हुई जिसमें शांति और सहयोग पर चर्चा हुई तथा कैलाश मानसरोवर यात्रा बहाल की गई.