Israel-Hamas War: 'जंग तो चंद रोज होती है, जिंदगी बरसों तलक रोती है'...जावेद अख्तर ने बॉर्डर फिल्म के लिए जब ये गीत लिखा था तो इसे सुनने वाले लोगों की आंखों में आंसू थे क्योंकि ये सिर्फ अल्फाज नहीं थे बल्कि जंग के बाद नजर आने वाली बर्बादी के दृश्य थे, शायद इसके पीछे बंटवारे को वो दर्द था जिसे वो आजादी के दौरान महसूस कर आये थे. इतना ही नहीं 1965 और 1971 की जंग के प्रत्यक्षदर्शी भी रहे, ऐसे में जब उन्हें बॉर्डर फिल्म के लिए सेना के उन जवानों के साथ करीब से काम करने का मौका मिला जिन्होंने इसके लिए अपना सबकुछ न्यौछावर किया तो उन्होंने जंग के उस पहलू को भी दिखाने की कोशिश की जिसे शायद समझ लिया जाए तो फिर दोबारा जंग करने की हिम्मत न हो.
मौजूदा दौर में जहां दुनिया रूस-यूक्रेन के युद्ध से उबर नहीं पाई है तो वहीं पर इजराइल और फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास के युद्ध ने नया भूचाल ला खड़ा किया है. हमास के लड़ाकों ने इजरायल पर हमलों की शुरुआत की जिसका इजरायल करारा जवाब दे रहा है. ये तस्वीर दुनिया के सामने है लेकिन जिस तस्वीर को लोग नहीं देख पा रहे हैं वो ये है कि गोला-बारूद किसी का भी गिरे, किसी पर भी गिरे लेकिन मर सिर्फ इंसान रहा है, फिर चाहे वो फिलिस्तीन का हो या फिर इजराइल का. हमास की ओर से दागे गये हजारों रॉकेट का जवाब इजराइल अपनी आग उगलती मिसाइल से दे रहा है और इन सब के बीच हर रोज बर्बादी की नई-नई तस्वीरें सामने आ रही हैं.
इजिप्ट और इजरायल के बॉर्डर से घिरे हुए गाजा स्ट्रिप में करीब 10 लाख जिंदगियां हर रोज इसी बात से सहमी हुई हैं कि न जाने कौन सी मिसाइल, कौन सा बम उनकी पहचान को खत्म कर देगी. जिन परिवारों, जिन रिश्तेदारों और जिन जानने वाले लोगों के बीच वो अपने सुख-दुख बांटे थे, न जाने उनमे से अब किस का चेहरा फिर देखने को मिलेगा. इस बीच सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है जो जंग में फंसे लोगों की कहानी बयां कर रही है.
इस तस्वीर में लोग अपने हाथ या शरीर के किसी हिस्से पर अपना नाम लिखते हुए नजर आ रहे हैं. ऐसा करने के पीछे की वजह की बात की जाए तो अपनों से न बिछड़ने की चाहत है, मतलब कि अगर किसी मिसाइल, रॉकेट, बम या गोलीबारी में उनका शरीर कुछ इस कदर हो जाए की पहचानना मुश्किल हो तो कम से कम उनके हाथ पर लिखे नाम से उनके चाहने वालों को ये पता चल जाए कि वो अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं. उनके जिंदा होने की आस में उन्हें दर-दर राहत कैंपों में भटकने की कोई जरूरत नहीं है. कोई जरूरत नहीं है उनकी सलामती के लिए दुआ करने की और न ही कोई जरूरत है उनके साथ किसी दुर्घटना के बारे में खतरनाक सपने देखकर रात को अचानक जगने की.
इस तरीके से शायद कुछ तो राहत मिलेगी लेकिन जब तक जिंदगी की कीमत को समझने वाले नहीं होंगे तब तक ऐसे ही शायद लोगों को अपने नाम लिखने होंगे. जब तक जिंदगी की कीमत नहीं समझेंगे हवाएं बारुद से बोझल ही नजर आएंगी, मौत की बू जिंदगी को घिनौनी बनाएगी और इन सब के बीच जिंदगी पिस जाएगी.
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