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अमेरिका के चढ़ावे पर तबाही की ओर न चले जाना बेंजामिन नेतन्याहू, यूक्रेन जैसा न हो जाए हाल!

बेंजामिन नेतन्याहू ने जबसे इजराइल की कमान संभाली है, हमास, हिजबुल्लाह और हूती जैसे आतंकी संगठन आंख दिखा रहे हैं. आतंकी कभी पैराग्लाइडर से देश में घुस रहे हैं, कभी नागरिकों को बंधक बना ले रहे हैं. आखिर क्यों खत्म हो रही है इजराइल की दहशत, आइए समझते हैं.

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Abhishek Shukla
Israel Iran War
Courtesy: India Daily

Israel Iran War: जिन्हें वैश्विक राजनीति की थोड़ी भी समझ है, उन्हें पता है कि अमेरिका किसी का सगा नहीं है. अगर अमेरिका कहे कि वह किसी के साथ खड़ा है तो यह महज एक छलावा है. अमेरिका तब तक जंग के हालात में किसी की मदद नहीं करता, जब तक खुद पर हमले न हों. पता नहीं क्यों इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को यह समझ नहीं आ रहा है. अमेरिका और पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को चढ़ा दिया था कि हम तुम्हें नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइडेशन (NATO) में शामिल कर लेंगे, तुम हमारे करीब आओ, लेकिन जब साथ देने की बारी आई तो मारे गए यूक्रेन के निर्दोष नागरिक. बेंजामिन नेतन्याहू जैसे अपने पड़ोसियों से भिड़ रहे हैं, उनका भी कहीं ये अंजाम न हो जाए.

रूस ने यूक्रेन को तबाह कर दिया है. कीव और खारकीव जैसे शहर कब्रगाह बन गए हैं. बड़ी इमारतें ध्वस्त हो गई हैं, सड़कों में लोग दफ्न हैं. लाखों लोग खुशहाल जिंदगी जी रहे थे अब शरणार्थी शिविरों में टिके हैं. किसी को पोलैंड ने शरण दी है तो किसी ने दुनिया के दूसरे देशों में पनाह ली है. जैसी गलती यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेंलेस्की ने की है, वही गलती बेंजामिन नेतन्याहू कर रहे हैं. वे पश्चिमी देशों के बहकावे में आकर अपना 'युद्ध प्रेम' छोड़ रहे हैं, जिसका नतीजा यह कि आतंकी घर में घुसकर ठोक रहे हैं.

कैसे इस्लामिक देशों के निशाने पर बार-बार आते रहे बेंजामिन?

बेंजामिन नेतन्याहू 6 बार इजराइल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. बेंजामिन नेतन्याहू पहली बार साल 1996 में प्रधानमंत्री बने और 1999 तक प्रधानमंत्री रहे. उनके पहले कार्यकाल के दौरान कई ऐसी चुनौतियां थीं, जिनसे वे जूझते रहे. उन्होंने सीरिया के साथ अपने संबंध बिगाड़े और सितंबर 1996 में उन्होंने अल अक्सा मस्जिद के बाद बनी प्राचीन सुरंग जनता के लिए खोल दी. 

फिलिस्तीनियों को इस बार पर ऐतराज था. जंग छिड़ी, नेतन्याहू ने 1993 के फैसले को पलटा लेकिन आफत मोल ले ली. उन्होंने वेस्ट बैंक के हेब्रान के ज्यादातर हिस्सों से सेना वापस बुला लिया. बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने पहले कार्यकाल में अपने खुफिया विभाग को बेहद मजबूत बनाया. उन्हें अरब देशों में चल रहे, अपने खिलाफ हर प्लान की जानकारी वक्त से पहले मिलने लगी.

जिस इजराइल की थी दुनिया में धाक, उसे आंख दिखा रहे छुटभैये आतंकी

फरवरी 2009 में जब चुनाव हुए तो एक बार फिर वे गठबंधन की मदद से प्रधानमंत्री बने. इसी साल उन्होंने फिलिस्तीन पर दबाव बनाया कि इजराइल को यहूदी राष्ट्र के तौर पर मान्यता दे. उन्होंने शर्तों की एक लंबी लिस्ट तैयार कराई लेकिन इजराइली गुटों को यह रास नहीं आया. बेंजामिन ने वेस्ट बैंक में बन रही बस्तियों को रोक दिया. 2011 तक, अरब के देश, अरब स्प्रिंग से जूझने लगे. जगह-जगह विद्रोही गुट पैदा होने लगे. कई नए आतंकी संगठन पनपे. इजराइल ज्यादा मजबूत स्थिति में आने लगा. नेतन्याहू ने डिफेंस पर पानी की तरह पैसा बहाया.

यही दौर था जब इजराइल में लोग बुनियादी चीजों के लिए सड़क पर आ गए. इजराइल में देशव्यापी प्रदर्शन होने लगे कि सेना पर तो ध्यान दिया जा रहा है लेकिन बुनियादी जरूरतों पर नहीं. आर्थिक असमानता बढ़ने लगी, सड़कें खस्ताहाल होने लगीं और आवास लेकर शिक्षा प्रणाली तक पर सवाल उठने लगे. 

जनवरी 2014 में एक बार फिर नेतन्याहू सत्ता में आए लेकिन उन पर दबाव झलकने लगा. 2014 में इजराइल पर गाजा पट्टी से रॉकेट हमले हुए. हमास ने इजराइल को बड़ा नुकसान पहुंचाया. उन्होंने फिलिस्तीन को करारा जवाब दिया. सैकड़ों फिलिस्तीनी नागरिक जख्मी हो गए.  दुनियाभर में इजराइल की आलोचना होने लगी लेकिन तब तक इजराइल ने दुनिया में अपनी धाक जमा ली थी. 

ऐसे इजराइल को ही कमजोर करते गए बेंजामिन नेतन्याहू!

2014 में ही अमेरिका और इजराइल के संबंध बिगड़े फिलिस्तीनियों के साथ बेंजामिन बात के लिए तैयार नहीं थे ये बाद बाराक ओबामा को नागवार गुजरी. ओबामा की ईरान पॉलिसी के धुर आलोक बेंजामिन अपनी जिद पर अड़े रहे और गाजा पट्टी की ओर से होने वाले हमलों का मुंहतोड़ जवाब देते रहे. 

फरवरी में बेंजामिन नेतन्याहू की मुश्किलें बढ़ती गईं. उन पर रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगे. नेतन्याहू की लोकप्रियता कम हुई. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे चले. उन्होंने सत्ता भी गंवाई. नए प्रधानमंत्री नेफताली बेनेट के राज्य में इजराइल की ताकत पर और सवाल उठने लगे.

साल 2022 में बेंजामिन नेतन्याहू ने सत्ता में वापसी की. आरोप लगे कि पुलिस ने कुछ गवाहों के फोन को हैक करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर का सहारा लिया. बेंजामिन विवादों में घिरे रहे और इजराइली डिफेंस फोर्सेज की ताकत घटती रही. 

हमास जैसे संगठन ने दिया इजराइल को कभी न भरने वाला घाव

हाल ऐसे हो गए कि 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हौसले इतने बढ़ गए कि हमास ने सैकड़ों मिसाइल इजराइल पर दागे. जमीन, समुद्र और आसमान से हमले किए गए. हमलों में 1,200 से ज्यादा इजराइली नागरिक मारे गए. 240 से ज्यादा नागरिकों को बंधक बना लिया गया. मोसाद तक को खबर नहीं लगी कि हमास इतना बड़ा हमला करने वाला है.

बेंजामिन नेतन्याहू ने हमले के बाद एक वॉर कैबिनेट बनाई. बेंजामिन ने दम दिखाया और गाजा पट्टी को कब्रिस्तान में तब्दील कर दिया. उन्होंने फिलिस्तीन के आम नागरिकों से कहा कि आप लोग ईरान जाएं, या दुनिया में कहीं भी जाएं लेकिन गाजा को छोड़ दें. इजराइली सेना गाजा में घुस गई. अस्पताल, मकान, दुकान हमास के हर ठिकाने पर हमला बोला. बेंजामिन नेतन्याहू ने दुनिया के किसी देश की पुकार नहीं सुनी. उन्होंने कहा कि हम अपने नागरिकों की हिफाजत के लिए कुछ भी करेंगे. गाजा पट्टी में लोग मरने लगे. मार्च में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि उनका एक्शन, अब गलत हो रहा है.

बेंजामिन नेतन्याहू पर वहां के विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि वे बेहद कमजोर शासक हैं. उन्होंने न तो सेना पर ध्यान दिया, न ही खुफिया विभाग पर. हमास के आतंकियों ने ऐसा जख्म दिया है जिसे इजराइल दशकों तक नहीं भूल पाएगा. पहले खाड़ी के जो देश, इजराइल का नाम सुनकर कांपते थे, जिस मोसाद की खौफ अमेरिका तक थी, वही लाचार नजर आ रहा है. मोसाद एक वक्त में दुबई, तेहरान, ईरान, लेबनान में कत्ले-ए-आम कर रहा था. दुश्मनों को चुन-चुनकर इजराइल मार रहा था, वही इजराइल अब बेबस हो गया है.

इन दुश्मनों का काट नहीं ढूंढ पाए हैं बेंजामिन नेतन्याहू, इजराइल के कितने हैं दुश्मन?

इजराइल के दो दुश्मन हैं. पहले उसके पड़ोसी मुस्लिम देश, दूसरे कट्टरपंथी आतंकी संगठन. दोनों से इजराइल को उतना ही खतरा है. इजराइल के दुश्मनों की लिस्ट बहुत लंबी है. इजराइल के दुश्मन देशों में मिस्र, सीरिया, ईरान, जॉर्डन और तुर्किये जैसे देश हैं. वहीं, इजराइल के दुश्मन कट्टरपंथी संगठनों में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन, हमास, फतह और हिज्बुल्लाह शामिल हैं. बेंजामिन नेतन्याहू यह भूल रहे हैं कि अगर उन्होंने मरो या मारो की रणनीति नहीं अपनाई तो ये संगठन, उनके देश को निगल जाएंगे. अक्टूबर के हमले को अभी वे भूल नहीं पाए होंगे कि ईरान ने उनके साथ पंगा ले लिया है.

कहीं यूक्रेन जैसा न हो जाए इजराइल का हाल

ईरान का कहना है कि 1 अप्रैल को इजराइल ने आतंकियों के नाम पर इरानी दूतावास पर हमला बोल दिया, जिसमें ईरानी अधिकारी मारे गए. इरान ने इसके जवाब में इजराइल पर सैकड़ों ड्रोन दागे. आयरन डोम और एरो-3 की मदद से ईरान के ड्रोन को निष्क्रिय कर दे रहा है. अगर ऐसे ही वैश्विक दबाव के चलते इजराइल ने अपनी सुरक्षा नीतियां कमजोर कीं तो सारे इस्लामिक देश मिलकर एक छोटे से यहूदी देश का सफाया कर देंगे और वहां के लोगों का हाल, यूक्रेन जैसा होगा. जो ये सोच रहा था कि वह अमेरिका का दोस्त है, नाटो के देश उस पर फिदा हैं लेकिन सबके देखते-देखते ही यूक्रेन तबाह हो गया और रूस ने हेकड़ी निकाल दी. अगर बेंजामिन नेतन्याहू ने इरादे नहीं बदले तो यूक्रेन का जैसा ही अंजाम इजराइल का होगा.