Iran Nuclear Programme: ईरान के न्यूक्लियर प्रोजेक्ट पर भारत का क्या है रुख? जानिए 2005 से लेकर 2024 तक क्या हुए बदलाव
Iran Nuclear Programme: भारत ने ईरान के न्यूक्लियर प्रोजेक्ट पर संयम बरतने की कोशिश की है. 2005 में भारत ने IAEA में ईरान के खिलाफ वोट दिया था, जिसमें कहा गया था कि ईरान सुरक्षा उपायों का पालन नहीं कर रहा है.

Iran Nuclear Programme: ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर भारत की चिंता कोई नई नहीं है. 24 सितंबर 2005 को भारत ने पहली बार IAEA में ईरान के खिलाफ वोट किया था. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि ईरान ने सुरक्षा उपायों के एग्रीमेंट का पूरी तरह पालन नहीं किया है. भारत ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ मिलकर यह कदम उठाया था, जो उस वक्त भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते की शुरुआत का दौर था.
हालांकि, भारत ने इस मसले को तत्काल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में न भेजने की अपील की थी. भारत का मानना था कि ईरान को उसके अधिकार के तहत शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के विकास की अनुमति होनी चाहिए, लेकिन उसे IAEA के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन करना चाहिए.
2006 में दोबारा अमेरिका के पक्ष में वोट
4 फरवरी 2006 को भारत ने फिर से IAEA में अमेरिका का समर्थन किया. तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संसद में कहा, 'एनपीटी पर साइन करने वाले देश के रूप में ईरान को शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा विकास का अधिकार है, लेकिन इसे IAEA की निगरानी में होना चाहिए.'
2007 से 2024: संतुलन की नीति
जब मामला यूएनएससी चला गया, तो भारत पर दबाव कम हुआ. 2007 से 2024 तक भारत ने इस मुद्दे पर सक्रिय रूप से कोई रुख नहीं अपनाया. इस दौरान अमेरिका-ईरान के बीच हुई JCPOA डील और फिर ट्रंप द्वारा उसका खत्म किया जाना भी हुआ, जिससे तनाव और बढ़ गया.
2024: दो बार मतदान से किनारा
जून और सितंबर 2024 में जब अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने IAEA में ईरान के खिलाफ प्रस्ताव लाया, तब भारत ने दोनों बार वोटिंग से दूरी बनाए रखी. इससे भारत ने इजरायल और ईरान के बीच संतुलन बनाकर चलने की नीति को आगे बढ़ाया.