नोबेल सप्ताह 2025 6 अक्टूबर यानी आज से शुरू हो चुका है और 6 अक्टूबर को शांति के नोबेल पुरस्कार की घोषणा की जाएगी. पुरस्कार विजेता को 1.1 मिलियन डॉलर की रकम दी जाएगी. दुनिया में शांति का संदेश देने वाले, दुश्मनी को भुलाकर दोस्ती की वकालत करने लोगों को यह पुरस्कार दिया जाता है.
भारत-पाकिस्तान समेत दुनियाभर में सात युद्ध रुकवाने का दावा करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शांति का नोबेल पुरस्कार पाने के लिए बेताब नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि उनके द्वारा दुनियाभर में किये गए शांति के प्रयासों के लिए उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की यह मुराद पूरी होती नजर नहीं आ रही है.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप को इस बार शांति का नोबेल पुरस्कार मिलना मुश्किल है. वहीं दूसरी तरफ नोबेल पुरस्कार विजेताओं का चयन करने वाला देश नॉर्वे इस बात से काफी डरा हुआ है अगर डोनाल्ड ड्रंप को शांति का नोबेल नहीं मिला तो कईं इसके गंभीर परिणाम देखने को ना मिलें. बता दें कि नॉर्वे की संसद द्वारा गठित एक स्वतंत्र कमिटी द्वारा नोबेल पुरस्कार के विजेताओं का चयन किया जाता है.
शांति के नोबेल के कितने लायक हैं ट्रंप
शांति का नोबेल पाने के लिए डोनाल्ड ट्रंप कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. वह सार्वजनिक मचों से कई बार कह चुके हैं कि उन्होंने अब तक 6-7 युद्दों को बंद कराने में भूमिका निभाई है. उन्होंने अब्राहम समझौते पर भी प्रकाश डाला जिसने 2020 में इजरायल और कुछ अरब देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाया. संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में बोलते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि हर कोई इस बात से सहमत है कि उन्हें यह पुरस्कार मिलना चाहिए.
डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल दिलाने के लिए ट्रंप की टीम पुरजोर तरीके से लॉबिंग कर रही है और उनके पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रही है. डोनाल्ड ट्रंप पुरस्कार के लिए नॉर्वे के पूर्व नाटो महासचिव जेन्स स्टोलनबर्ग से भी संपर्क किया था.
इजरायल-फिलिस्तीन जंग को खत्म करने में जुटे ट्रंप
शांति के नोबेल पुरस्कार की घोषणा 10 अक्टूबर को होनी है. उससे पहले डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध खत्म करने में पूरी ताकत झोंक दी है. काहिरा में आज अमेरिका और अन्य देशों के मध्यस्थता में इजरायल और हमास के बीच युद्ध खत्म कराने की पुरजोर कोशिश चल रही है.
ट्रंप को शांति का नोबेल मिलना मुश्किल
ट्रंप के तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद इस बार उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिलना मुश्किल नजर आ रहा है. दरअसल, विशेषज्ञों का मानना है कि नामांकन की डेडलाइन 31 जनवरी थी. रिपब्लिक कांग्रेस सदस्य क्लाउडिया टेनी ने अब्राहम समझौते पर उनके काम के लिए उनके नाम का समर्थन किया था, पाकिस्तान और कंबोडिया का समर्थन भी बहुत देर से आया और अब यह केवल 2026 तक ही मान्य होगा.
एक यूक्रेनी अधिकारी ने शुरुआत में उनके नाम की सिफारिश की थी लेकन बाद में भरोसा उठ जाने के बाद उन्होंने नामांकन वापस लेने की कोशिश की.
वहीं, पर्यवेक्षकों का करना ये भी है कि ट्रंप आत्ममुग्ध हो रहे हैं और उनकी यही शैली नॉर्डिक समाज की शांत और संयमित संस्कृति से टकराती है. नॉर्वे दिखावटी दावों के बजाय सूक्ष्मता और सामूहिक प्रयास को तरजीह देता है. यही नहीं 5 सदस्यीय नोबेल समिति के अधिकांश सदस्य कथित तौर पर उनके नामांकन का विरोध कर रहे हैं.
नॉर्वे को सताया डर
शांति पुरस्कार के नतीजों को लेकर नॉर्वे सतर्क है क्योंकि ट्रंप ने चेतावनी दी है कि हार उनके देश के लिए एक बड़ा अपमान मानी जाएगी. ऐसे में हो सकता है कि नोबेल ना मिलने पर ट्रंप बौखला जाएं और नॉर्वे के खिलाफ कोई बड़ा कदम उठा लें.