प्रशांत महासागर इस समय दुनिया की महाशक्तियों के सैन्य तनाव का केंद्र बन गया है. चीन और रूस के साझा एयर-पेट्रोलिंग मिशन के बाद जापान ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी, जिसके तुरंत बाद अमेरिका ने भी मोर्चा संभालते हुए अपना खतरनाक B-2 बॉम्बर ईस्ट चाइना सी में तैनात कर दिया.
यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब जापान की नई प्रधानमंत्री साने ताकाइची ईस्ट चाइना सी में रक्षा मजबूती और ताइवान की सुरक्षा को लेकर सख्त रुख अपना चुकी हैं.
पिछले सप्ताह चीन और रूस की वायु सेनाओं ने ईस्ट चाइना सी, जापानी समुद्री क्षेत्र और पश्चिमी प्रशांत में संयुक्त हवाई पेट्रोलिंग की. इस मिशन में रूस के TU-95 बॉम्बर्स और चीन के H-6K विमानों ने हिस्सा लिया. इनके साथ रूस के Su-30 और Su-35 तथा चीन के J-16 लड़ाकू विमानों ने कवरेज दी. इस सामरिक गतिविधि को जापान ने अपने विरुद्ध शक्ति प्रदर्शन बताया था.
हालांकि रूस ने दावा किया कि पूरी उड़ान अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दायरे में थी, लेकिन जापान और दक्षिण कोरिया ने इसे अस्वीकार्य बताया. जापानी रक्षा मंत्री शिंजिरो कोइजुमी ने कहा कि चीन-रूस का मिलाजुला दबाव क्षेत्रीय स्थिरता के लिए गंभीर खतरा है. जापान का आरोप यह भी था कि चीनी विमानों ने उसकी वायुसीमा के करीब आकर रडार जाम करने की कोशिश की.
नई प्रधानमंत्री साने ताकाइची ने हाल ही में ईस्ट चाइना सी में जापान की सुरक्षा तैयारियां बढ़ाने की घोषणा की है. ताइवान पर संभावित चीनी हमले की स्थिति में सहायता देने का वादा भी यही तनाव बढ़ाने का कारण बना. इसके बाद चीन ने अपना एयरक्राफ्ट कैरियर 'लियाओनिंग' क्षेत्र में तैनात कर दिया. इससे J-15 लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरते हुए सैन्य उपस्थिति का संकेत दिया.
ईस्ट चाइना सी पर चीन भी अपना दावा करता रहा है. हाल में हुए वायु संघर्ष के दौरान जापानी F-15 फाइटर्स को चीनी विमानों के जवाब में उड़ान भरनी पड़ी. दोनों ने एक-दूसरे पर रडार हस्तक्षेप के आरोप लगाए. इसी तनाव के बीच रूस ने एक बार फिर अपने TU-95 स्ट्रेटेजिक बॉम्बर्स को उसी क्षेत्र में भेजा, जिससे माहौल और गर्म हो गया.
चीन और रूस की गतिविधियों को देखते हुए अमेरिका ने जापान का साथ देते हुए अपना B-2 स्टील्थ बॉम्बर भेज दिया है. यह दुनिया के सबसे खतरनाक रणनीतिक हथियारों में से एक है. B-2 को जापान के F-35 और F-15 विमानों के साथ संयुक्त पेट्रोलिंग करते देखा गया. अमेरिका का यह कदम संकेत देता है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अब तीन महाशक्तियों की रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का बड़ा अखाड़ा बन चुका है.