नई दिल्लीः चांद की सतह पर फिलहाल सो रहे भारत के विक्रम लैंडर को बीते दिनों भूकंप के झटकों का सामना करना पड़ा था. भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने कहा था कि विक्रम लैंडर लैंडर ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर एक घटना को दर्ज किया है. इससे संकेत मिलता है कि चांद पर भूकंप आया था. वैज्ञानिकों ने चांद की सतह पर भूकंप का पता लगाने के लिए ILSA उपकरण लगाया है. इस उपकरण ने रोवर प्रज्ञान और अन्य उपकरणों की चांद पर हुई हलचल का पता लगाया था. वैज्ञानिकों के अनुसार, धरती पर जहां भूकंप कुछ मिनट के लिए आते हैं. वहीं चांद पर भूकंप के झटके आधे घंटे तक आते रहते हैं.
भूकंप की तीव्रता होती है कम
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इन्हें अर्थक्वेक नहीं बल्कि मूनक्वेक कहा जाता है.चांद पर भूकंप धरती के गुरुत्वीय बल के प्रभाव के कारण आता है. वैज्ञानिकों ने कहा कि धरती पर जहां भूकंप कुछ देर के लिए ही रहता है जबकि चांद की सतह पर आने वाला भूकंप आधे घंटे तक रहता है. हालांकि चांद पर आने वाला भूकंप हल्का होता है. वैज्ञानिकों ने कहा कि चांद की सतह पर भूकंप अक्सर आते रहते हैं. यूएस ने चांद की सतह पर भूकंप का पता लगाने के लिए अपने अपोलो मिशन के दौरान उपकरण स्थापित किया था.
वैज्ञानिकों ने बताई भूकंप आने की वजह
नासा ने अपने अपोलो मिशन में चांद की सतह पर भूकंप की जांच के लिए भेजे गए उपकरण से 1969 से लेकर 1977 तक यहां आए भूकंप का पता लगाया. इन आंकड़ो से खुलासा हुआ कि चांद बेहद सक्रिय है. इससे पहले ऐसा माना जाता था कि चांद एक केवल निर्जीव बर्फ का टुकड़ा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, धरती के गुरुत्वीय प्रभाव के अलावा उल्कापिंड के गिरने की वजह से भी भूकंप आते हैं. वैज्ञानिक फिलहाल अभी यह स्पष्ट नहीं कर सके हैं कि चांद की सतह पर आखिर भूकंप क्यों आते हैं. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह कम आंकड़ों का होना है.
50 साल पुराने आंकड़ों का हो रहा इस्तेमाल
वैज्ञानिकों ने बताया कि चांद के आसपास भूकंप को मापने के लिए वैश्विक नेटवर्क के उपकरणों को लगाया जाए. इससे चांद की सतह पर होने वाले सारे भूकंपीय तंत्र की जानकारी हो जाएगी. इससे यह भी पता चल सकेगा कि आखिर यह घचनाएं क्यों होती हैं. आपको बता दें कि चांद की सतह पर भूकंप की माप के लिए 50 साल से ज्यादा पुराने डेटा का प्रयोग किया जा रहा है.
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