Mahatma Ayyankali Jayanti: भारत के सामाजिक सुधार आंदोलनों में महात्मा अय्यंकालि का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. दलितों, पिछड़ों और मुख्य रूप से दलित महिलाओं के सम्मान और अधिकारों की रक्षा में उनका योगदान बेहद अहम है. आज यानी 28 अगस्त को उनकी जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण को याद किया.
प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर लिखा, 'महात्मा अय्यंकाली को उनकी जयंती पर शत-शत नमन. उन्हें सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है. वे ज्ञान और शिक्षा के प्रति भी अत्यंत समर्पित थे.' ज्योतिबा फुले, डॉ. भीमराव आंबेडकर, नारायण गुरु और ई.वी. रामासामी पेरियार जैसे समाज सुधारकों की परंपरा में अय्यंकालि ने दलितों में आत्मसम्मान और स्वाभिमान की अलख जगाई.
Tributes to Mahatma Ayyankali on his Jayanti. He is remembered as an icon of social justice and empowerment. He was also deeply passionate about knowledge and learning. His efforts will continue motivating generations to work towards a just and equitable society.
— Narendra Modi (@narendramodi) August 28, 2025
कैसा था महात्मा अय्यंकालि का शुरूआती जीवन?
28 अगस्त 1863 को केरल के तिरुवनंतपुरम से 13 किलोमीटर दूर वेंगनूर में जन्मे अय्यंकालि का परिवार पुलायार जाति से था, जिसे उस समय अछूतों में भी सबसे निम्न माना जाता था. अपने मात-पिता के आठ संतानों में वे सबसे बड़े थे. उस दौर में पुलायारों की स्थिति भू-दास जैसी थी. जमींदार, मुख्य रूप से नायर, अपनी मर्जी से उन्हें कठोर परिश्रम के लिए मजबूर करते थे. बदले में उन्हें केवल 600 ग्राम चावल मिलता, जो कई बार सड़ा हुआ होता था.
एक अपमान से उठी विद्रोह चिंगारी
बचपन में अय्यंकालि को सामाजिक भेदभाव का कड़वा अनुभव हुआ. एक बार फुटबॉल खेलते समय गेंद एक नायर के घर में चली गई. घर के मालिक ने उन्हें डांटकर सवर्ण बच्चों से दूर रहने की हिदायत दी. इस अपमान ने अय्यंकालि के मन में विद्रोह की चिंगारी जलाई. उन्होंने गीतों और नाटकों के माध्यम से सामाजिक जागरूकता फैलाने का बीड़ा उठाया.
बैलगाड़ी क्रांति से सामाजिक व्यवस्था को दी चुनौती
उस समय दलितों को गांव में स्वतंत्र रूप से घूमने, साफ कपड़े पहनने या मुख्य मार्गों पर चलने की अनुमति नहीं थी. लेकिन अय्यंकालि ने इन रूढ़ियों को तोड़ने का संकल्प लिया. साल 1889 में महज 25 साल की उम्र में उन्होंने दलित युवाओं का एक मजबूत संगठन बनाया. 1893 में, उन्होंने दो हृष्ट-पुष्ट बैल, एक गाड़ी और पीतल की घंटियां खरीदीं. सज-धजकर बैलगाड़ी पर सवार होकर, घंटियों की गूंज के साथ, उन्होंने मुख्य सड़कों पर यात्रा शुरू की. यह कदम शताब्दियों पुरानी सामाजिक व्यवस्था के लिए खुली चुनौती था. जब सवर्णों ने उनका रास्ता रोका, तो अय्यंकालि ने दरांती निकालकर उनका सामना किया. इस घटना ने सवर्णों को हतप्रभ कर दिया. इस साहसिक कदम ने दलितों में आत्मविश्वास जगाया और सामाजिक बदलाव की नींव रखी.
शिक्षा क्रांति से दलितों को दिलाया ज्ञान का अधिकार
1904 में अय्यंकालि ने वेंगनूर में पुलायार और अन्य अछूतों के लिए 'हला स्कूल' की स्थापना की. सवर्णों ने स्कूल पर हमला कर उसे तोड़फोड़ कर दिया, लेकिन अय्यंकालि ने हार नहीं मानी. उन्होंने तुरंत स्कूल का पुनर्निर्माण किया और शिक्षकों की सुरक्षा के लिए रक्षक नियुक्त किए. 1910 में, जब शिक्षा निदेशक मिशेल ने दौरा किया, तो सवर्णों ने दलित छात्रों के स्कूल प्रवेश का विरोध किया और मिशेल की जीप को आग लगा दी. फिर भी, उस दिन आठ पुलायार छात्रों को स्कूल में एडमिशन मिला. साल 1912 में अय्यंकालि को श्री मूलम पॉपुलर असेंबली का सदस्य भी चुना गया. अपने पहले भाषण में, उन्होंने दलितों के लिए संपत्ति अधिकार, शिक्षा, सरकारी नौकरियों में आरक्षण और बेगार से मुक्ति की मांग की.
साधु जन परिपालन संघम से रचा सामाजिक सुधार का नया अध्याय
1907 में अय्यंकालि ने 'साधु जन परिपालन संघम' की स्थापना की. इसका उद्देश्य मजदूरों के कार्यदिवसों को सात से घटाकर छह करना, दुर्व्यवहार से मुक्ति और मजदूरी में वृद्धि था. 1907 में, रूस की बोल्शेविक क्रांति से पहले, पुलायारों ने हड़ताल शुरू की, जिसमें स्कूलों में प्रवेश, सार्वजनिक मार्गों पर चलने की आजादी और खाली जमीन का मालिकाना हक जैसी मांगें शामिल थीं. जमींदारों के दमन के बावजूद, अय्यंकालि ने मछुआरों के साथ समझौता कर दलितों को नावों पर काम दिलवाया. अंततः सरकार ने दलितों के लिए शिक्षा और सार्वजनिक मार्गों पर स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता दी.
दलित महिलाओं को स्तन ढंकने का दिलाया अधिकार
उस समय दलित महिलाओं को अपने स्तन ढंकने का अधिकार नहीं था. अय्यंकालि ने इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. उन्होंने दलित महिलाओं से कहा, "दासता के प्रतीक आभूषणों को त्यागकर सामान्य ब्लाउज धारण करें." सवर्णों के विरोध और दंगों के बावजूद, अय्यंकालि और नायर सुधारवादी परमेश्वरन पिल्लई की मौजूदगी में सैकड़ों दलित महिलाओं ने गुलामी के प्रतीक कंठहार उतार फेंके. बाद में सवर्णों को दलितों के साथ मध्यस्था करने पर मजबूर होना पड़ा.
कैसे हुआ महान अय्यंकालि का निधन?
अय्यंकालि की मांग पर सरकार ने 500 एकड़ जमीन आवंटित की, जिसे 500 पुलायार परिवारों में बांटा गया. साल 1904 से वे दमा (अस्थमा ) से पीड़ित हो गए. 24 मई 1941 को उनकी तबीयत बिगड़ गई और 18 जून 1941 को इस महान योद्धा का निधन हो गया. महात्मा अय्यंकालि की विरासत आज भी दलितों और समाज के कमजोर वर्गों में आत्मविश्वास और सम्मान की प्रेरणा देती है.