2025 में कौन बना राजनीति का धुरंधर, किसका हो गया सूपड़ा साफ, यहां देखें पूरी लिस्ट
साल 2025 ने दिखा दिया कि राजनीति में कोई भी हमेशा मजबूत या कमजोर नहीं रहता. सही समय, सही रणनीति और जनता का भरोसा ही असली जीत तय करता है.
साल 2025 भारतीय राजनीति के लिए उतार-चढ़ाव से भरा रहा. साल की शुरुआत दिल्ली विधानसभा चुनावों से हुई और अंत बिहार के चौंकाने वाले नतीजों पर जाकर रुका. इस दौरान कई बड़े नेता उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे, तो कुछ ऐसे चेहरे उभरे जिन्होंने खुद को राजनीति का “डार्क हॉर्स” साबित किया. यह साल एक बार फिर यह बताकर गया कि सत्ता स्थायी नहीं होती और राजनीति में टिके रहना भी जीत जितना ही अहम है.
साल 2025 में किसके सिर पर सजा जीत का सेहरा, किसको मिली हार...
नीतीश कुमार
बिहार चुनावों से पहले नीतीश कुमार को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे. उम्र, स्वास्थ्य और एनडीए के अंदर मतभेद को उनकी कमजोरी बताया गया लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया. एनडीए ने 243 सीटों में से 202 सीटें जीतकर बड़ी जीत दर्ज की. नीतीश कुमार ने एक बार फिर साबित किया कि वह बिहार की राजनीति के सबसे मजबूत खिलाड़ियों में से एक हैं.
सिद्धारमैया
कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच खींचतान सामने आई. “सीक्रेट डील” की चर्चा भी हुई, लेकिन फिलहाल मामला शांत है. हाईकमान ने सिद्धारमैया को समय दिया है और उन्होंने अपनी कुर्सी बचाए रखी. इस लिहाज से यह साल उनके लिए राहत भरा रहा.
नितिन नबीन
बिहार के विधायक नितिन नबीन का बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनना बड़ी राजनीतिक छलांग माना गया. कम उम्र में संगठन का लंबा अनुभव और चुनावी रणनीति की समझ ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत पहचान दिलाई.
चिराग पासवान
चिराग पासवान ने बिहार में खुद को एनडीए के अहम चेहरे के रूप में स्थापित किया. उनकी पार्टी ने 19 सीटें जीतकर गठबंधन की जीत में अहम भूमिका निभाई.
इनके हाथ लगी हार
कांग्रेस
2025 कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहा. दिल्ली में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला, वहीं बिहार में उन्हें सिर्फ 6 सीटें मिलीं और अंदरूनी कलह भी बढ़ी. कई नेताओं ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए.
लालू परिवार
बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी का प्रदर्शन कमजोर रहा. चुनावी हार के साथ-साथ परिवार के भीतर विवाद भी खुलकर सामने आए, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा.
प्रशांत किशोर
जन सुराज के जरिए राजनीति में उतरने वाले प्रशांत किशोर को बड़ी निराशा हाथ लगी. बिहार विधानसभा चुनाव में एक भी सीट न जीत पाना उनके लिए बड़ा झटका रहा.
अरविंद केजरीवाल
दिल्ली में आम आदमी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई. खुद केजरीवाल भी अपनी सीट हार गए, जिससे उनकी “ईमानदार नेता” की छवि को बड़ा झटका लगा.
डीके शिवकुमार
तमाम कोशिशों के बावजूद डीके शिवकुमार सिद्धारमैया को कर्नाटक सीएम की कुर्सी से हटाने में नाकाम रहे. डीके शिवकुमार ने दिल्ली की एक के बाद एक कई यात्राएं कीं लेकिन हाईकमान टस से मस नहीं हुआ. डीके शिवकुमार सीएम बनने के सभी मानकों पर खरे उतरे हैं, पार्टी के अधिकांश विधायक उनके साथ हैं लेकिन बावजूद इसके उन्होंंने पीछे हटने का फैसला किया है.