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'बाकी 2 बुलेट्स कहां हैं?', बदलापुर एनकाउंटर पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुलिस से पूछे सवाल

बदलापुर में दो बच्चियों के साथ यौन शोषण के आरोपी अक्षय शिंदे के एनकाउंटर पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सवाल उठाए हैं. आरोपी की हिरासत में मौत पर मुंबई पुलिस की खिंचाई करते हुए कहा कि इसमें गड़बड़ी दिख रही है और इस घटना को मुठभेड़ नहीं कहा जा सकता.

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Edited By: India Daily Live
akshay shinde encounter case
Courtesy: Social Media

बॉम्बे हाई कोर्ट ने बदलापुर यौन उत्पीड़न के आरोपी की हिरासत में मौत पर मुंबई पुलिस की खिंचाई करते हुए कहा कि इसमें गड़बड़ी दिख रही है और इस घटना को मुठभेड़ नहीं कहा जा सकता. कोर्ट ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया कि वह आरोपी अक्षय शिंदे को जेल से बाहर लाए जाने से लेकर शिवाजी अस्पताल में मृत घोषित किए जाने तक की सीसीटीवी फुटेज सुरक्षित रखे.

कोर्ट अक्षय शिंदे के पिता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने आरोप लगाया है कि उनके बेटे की हत्या फर्जी मुठभेड़ में की गई और उन्होंने विशेष जांच दल से जांच की मांग की है. अक्षय शिंदे (24) पर बदलापुर के एक स्कूल में दो नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप है, जहां वह सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करता था. उसे सोमवार को तलोजा जेल से बदलापुर ले जाया जा रहा था, तभी उसने एक पुलिसकर्मी की पिस्तौल छीन ली और गोली चला दी. पुलिस ने बताया कि जवाबी फायरिंग में एक सहायक निरीक्षक घायल हो गया और अक्षय शिंदे मारा गया.

एनकाउंटर के एक दिन पहले माता-पिता से मिला था अक्षय शिंदे

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ को संबोधित करते हुए याचिकाकर्ता अन्ना शिंदे के वकील ने कहा कि आरोपी ने घटना से एक दिन पहले अपने माता-पिता से मुलाकात की थी और वह पुलिस द्वारा आरोपित किसी भी कृत्य को करने की मानसिक स्थिति में नहीं था. वकील ने शिंदे की मौत की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करते हुए कहा कि मौजूदा मामले में पुलिस यह तय कर रही है कि किसे दोषी ठहराया जाए. कानून का शासन कायम रहना चाहिए. यह एक गलत उदाहरण पेश कर रहा है. 

कोर्ट ने पूछे तीखे सवाल

जब कोर्ट ने मौत का कारण पूछा तो राज्य सरकार के वकील ने जवाब दिया, बाएं जांघ पर गोली का घाव. हालांकि, अदालत ने कहा कि इस पर विश्वास करना कठिन है. पीठ ने कहा, आम आदमी तब तक पिस्तौल नहीं चला सकता जब तक कि उसे प्रशिक्षित न किया जाए. अदालत ने पूछा, आपके अनुसार, उसने तीन गोलियां चलाईं. केवल एक पुलिस अधिकारी को लगी. बाकी के बारे में क्या?

अदालत ने कहा कि आरोपी को घुटने के नीचे गोली मारनी चाहिए थी, इसपर राज्य सरकार के वकील ने जवाब दिया कि गोली मारने वाले पुलिसकर्मी के पास सोचने का समय नहीं था. कोर्ट ने कहा हम कैसे मान लें कि 4 अफसर मिलकर एक आरोपी को संभाल नहीं पाए. हथकड़ी भी लगी थी, अगर सेल्फ डिफेंस जैसी स्थिति थी तो आरोपी के पैर पर गोली चलाते हैं.