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Vice President election: उपराष्ट्रपति चुनाव में चाहिए हर वोट, उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA-INDIA ब्लॉक की क्या है खास रणनीति?

उपराष्ट्रपति चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और इसमें हर एक वोट की अहमियत है. यही कारण है कि भाजपा ने अपने सांसदों को प्रशिक्षित करने के लिए 'संसद कार्यशाला' आयोजित की है, जबकि कांग्रेस ने विपक्षी सांसदों को मतदान प्रक्रिया समझाने के लिए मॉक पोल कराया. इस बार चुनाव में दो ही उम्मीदवार मैदान में हैं. एनडीए से सीपी राधाकृष्णन और कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी. मतदान 9 सितंबर को संसद भवन में होगा.

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Kuldeep Sharma

भारत में उपराष्ट्रपति का चुनाव बाकी चुनावों से बिल्कुल अलग प्रक्रिया के जरिए होता है. इसमें वोटों की वैल्यू समान होती है, लेकिन प्राथमिकता अंकित करने का नियम इसे खास बनाता है. जरा सी गलती से वोट अमान्य हो सकता है, यही वजह है कि राजनीतिक दल अपने सांसदों को किसी भी तरह की चूक से बचाने के लिए पहले से तैयार कर रहे हैं.

भाजपा ने अपने सांसदों को मतदान प्रक्रिया की बारीकियों से अवगत कराने के लिए तीन दिन की विशेष कार्यशाला शुरू की है, जिसमें पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए. इस कार्यशाला का मकसद खास तौर पर नए सांसदों को यह सिखाना है कि बैलेट पेपर पर सही तरीके से प्राथमिकता कैसे दर्ज की जाए. दूसरी ओर, कांग्रेस ने विपक्षी सांसदों के लिए सोमवार को मॉक पोल कराया ताकि वे वोटिंग की तकनीकी प्रक्रिया को समझ सकें. दोनों ही दल इस कोशिश में हैं कि एक भी वोट अमान्य न हो.

चुनाव की प्रक्रिया और नियम

उपराष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचन आयोग विशेष गुलाबी रंग के बैलेट पेपर का इस्तेमाल करता है. इनमें दो कॉलम होते हैं, पहले में उम्मीदवारों के नाम और दूसरे में मतदाता द्वारा दी जाने वाली प्राथमिकता. पहली प्राथमिकता अंकित करना अनिवार्य है, जबकि बाकी प्राथमिकताएं वैकल्पिक होती हैं. वोटर चाहे तो संख्या को भारतीय अंकों, रोमन अंकों या किसी भारतीय भाषा के अंकों में दर्ज कर सकता है, लेकिन शब्दों में जैसे 'वन', 'टू' या 'फर्स्ट प्रेफरेंस' नहीं लिख सकता.

क्यों अहम है ट्रेनिंग?

पार्लियामेंट और विधानसभा चुनावों के विपरीत, उपराष्ट्रपति चुनाव में वोट डालते समय कोई सांसद किसी साथी की मदद नहीं ले सकता. केवल प्रेजाइडिंग ऑफिसर से ही सीमित सहायता मिल सकती है. ऐसे में ट्रेनिंग जरूरी हो जाती है ताकि पहली प्राथमिकता अंकित करने में कोई गलती न हो. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल जानते हैं कि यदि सांसदों से वोटिंग में गड़बड़ी हुई तो नतीजों पर असर पड़ सकता है.

अमान्य वोटों की आशंका

निर्वाचन अधिकारी बैलेट पेपर को अमान्य कर सकता है, अगर पहली प्राथमिकता अंकित नहीं की गई हो, या एक से ज्यादा उम्मीदवारों को पहली प्राथमिकता दे दी गई हो. इसी तरह यदि बैलेट पर ऐसा कोई निशान हो जिससे मतदाता की पहचान उजागर होती हो, तो भी वोट निरस्त हो सकता है. 2022 में जगदीप धनखड़ के चुनाव के दौरान 15 वोट अमान्य घोषित किए गए थे. 2017 में वेंकैया नायडू के चुनाव में 11 वोट अमान्य हुए थे. इन उदाहरणों ने इस बार पार्टियों को और सतर्क कर दिया है.

हर वोट की कीमत

इस बार केवल दो उम्मीदवार मैदान में हैं, एनडीए के सीपी राधाकृष्णन और विपक्ष के सुदर्शन रेड्डी. ऐसे में हर वैध वोट का सीधा असर नतीजे पर पड़ेगा. यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों अपने सांसदों को गाइड करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.

यह भी साफ है कि गलती से अमान्य हुए वोट न केवल सांसद की लापरवाही को उजागर करेंगे बल्कि पार्टी की साख पर भी सवाल खड़ा करेंगे. यही कारण है कि इस बार दोनों पक्ष यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि 9 सितंबर को गुलाबी बैलेट पेपर पर दर्ज हर निशान पूरी तरह वैध हो.