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'आप अंग्रेजों के लिए काम कर रहे थे...', राज्यसभा में वंदे मातरम पर खड़गे ने बीजेपी के दावों पर किया पलटवार

राज्यसभा में ‘वंदे मातरम्’ पर हुई विशेष बहस के दौरान सत्ता और विपक्ष के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोप हुए. खड़गे ने बीजेपी पर इतिहास विकृत करने का आरोप लगाया, जबकि अमित शाह ने राजनीतिक मकसद के आरोपों को खारिज किया.

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Kuldeep Sharma

नई दिल्ली: राज्यसभा में ‘वंदे मातरम्’ पर हुई ऐतिहासिक बहस राजनीतिक तकरार में बदल गई, जहां कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीजेपी की राष्ट्रवाद पर पूरी बहस को चुनौती दे दी. 

खड़गे ने स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस की भूमिका याद दिलाई और आरोप लगाया कि आज सत्ता में बैठे लोग उस दौर में राष्ट्रगीत और आजादी की लड़ाई के खिलाफ खड़े थे. जवाब में गृह मंत्री अमित शाह ने इस बहस को बंगाल चुनावों से जोड़ने को गलत बताते हुए विपक्ष की समझ पर सवाल उठाए.

‘आप स्वतंत्रता संग्राम के खिलाफ थे’

बहस की शुरुआत में मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ‘वंदे मातरम्’ को कांग्रेस ने जन-नारे के रूप में अपनाया. उन्होंने कहा कि 1921 के असहयोग आंदोलन में लाखों स्वतंत्रता सेनानी ‘वंदे मातरम्’ बोलते हुए जेल गए, जबकि 'आप ब्रिटिश सरकार के लिए काम कर रहे थे.' खड़गे ने पीएम मोदी और अमित शाह पर जवाहरलाल नेहरू को निशाना बनाने का भी आरोप लगाया.

‘वंदे मातरम् को चुनाव से जोड़ना गलत’

अमित शाह ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से नकार दिया. उन्होंने कहा कि कुछ सांसद बहस को बंगाल विधानसभा चुनावों से जोड़कर उसकी गरिमा कम करना चाहते हैं. शाह ने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ का महिमामंडन किसी चुनाव का हिस्सा नहीं, बल्कि देशभक्ति की भावना का विस्तार है और जो लोग इसे राजनीतिक नजर से देखते हैं, उन्हें अपनी सोच पर पुनर्विचार करना चाहिए.

‘वंदे मातरम्’ को बताया अमर रचना

गृह मंत्री शाह ने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ ऐसी अमर रचना है जो मातृभूमि के प्रति कर्तव्य, समर्पण और भक्ति की भावना जगाती है. उन्होंने कहा कि यह गीत केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि भारतीय अस्मिता का प्रतीक है. शाह ने विपक्ष को सलाह दी कि वे इस गीत के महत्व को चुनावी चश्मे से न देखें.

लोकसभा में भी चला लंबा राजनीतिक संग्राम

इससे एक दिन पहले लोकसभा में हुई बहस करीब 12 घंटे चली थी. सभी दलों के सांसदों ने इस गीत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को स्वीकार किया, लेकिन राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप वहां भी जारी रहे. ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ के मौके पर हुई इस चर्चा में बड़ी संख्या में सदस्यों ने भाग लिया.

इतिहास की याद और संसद की बहस

‘वंदे मातरम्’ पहली बार 7 नवंबर 1875 को ‘बंगदर्शन’ में प्रकाशित हुआ और बाद में आनंदमठ (1882) में शामिल हुआ. रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे सुरबद्ध किया. 150वीं वर्षगांठ हाल ही में मनाई गई. इसी पृष्ठभूमि में संसद का शीतकालीन सत्र 1 से 19 दिसंबर तक चल रहा है, जहां इस विषय ने राजनीतिक माहौल को और गर्मा दिया है.