US Sanctions on Russian Oil Giants: अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत के सस्ते रूसी तेल आयात को झटका दे दिया है, जिससे देश को 2.7 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ सकता है. रोसनेफ्ट और लुकोइल पर लगे बैन से रूसी सप्लाई लगभग शून्य हो जाएगी, जबकि ट्रंप प्रशासन यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए दबाव बढ़ा रहा है.
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में रूस पर सख्ती के इस नए दौर ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को चुनौती दे दी है. तीन सालों से रूस से मिल रही छूट वाली सप्लाई अब खतरे में है, जो देश की अर्थव्यवस्था को महंगाई की चपेट में धकेल सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव न केवल आयात बिल बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक बाजार की नई गतिशीलता को जन्म देगा.
ट्रंप का रूस पर दांव: भारत पर असर
डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन युद्ध में रूस को कमजोर करने के लिए रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाए, जो रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादक हैं. अमेरिकी ट्रेजरी ने 21 नवंबर तक लेनदेन रोकने का अल्टीमेटम दिया. ट्रंप ने कहा कि भारत साल के अंत तक रूसी तेल आयात 40 प्रतिशत घटाएगा. भारत ने हमेशा सस्ती ऊर्जा खरीद को उपभोक्ता हित से जोड़ा, लेकिन अब 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ से निर्यात पर भी दबाव है. दोनों देश व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, जहां ऊर्जा मुद्दा मुख्य है.
रूसी सप्लाई का संकट: आयात शून्य की ओर
रूस भारत को 35 प्रतिशत कच्चा तेल देता है, जिसमें रोसनेफ्ट-लुकोइल से रोजाना 10 लाख बैरल आते हैं- कुल 18 लाख बैरल का बड़ा हिस्सा. ब्लूमबर्ग के अनुसार, प्रमुख रिफाइनरियों में रूसी तेल प्रवाह लगभग शून्य हो जाएगा. रिलायंस इंडस्ट्रीज, भारत का सबसे बड़ा खरीदार, रोसनेफ्ट के साथ 5 लाख बैरल प्रतिदिन का सौदा रद्द करने की तैयारी में है. सरकारी रिफाइनरियां जैसे आईओसीएल, बीपीसीएल और एचपीसीएल दस्तावेज जांच रही हैं ताकि प्रतिबंधों का उल्लंघन न हो. सितंबर में आयात 16 लाख बैरल प्रतिदिन रहने के बावजूद, छूट घटकर 2 डॉलर प्रति बैरल रह गई.
आयात बिल में उछाल: 2.7 अरब डॉलर का नुकसान
आईसीआरए के प्रशांत वशिष्ठ के अनुसार, ये कंपनियां भारत के 60 प्रतिशत रूसी खरीद का हिस्सा हैं. मध्य पूर्व, अमेरिका या भूमध्यसागरीय स्रोतों से विकल्प मिलेंगे, लेकिन बिना छूट के बिल 2 प्रतिशत बढ़ेगा. वित्त वर्ष 25 के 137 अरब डॉलर आयात पर यह 2.7 अरब डॉलर का अतिरिक्त खर्च है. वाईएस सिक्योरिटीज के हर्षराज अग्रवाल ने कहा कि प्रति बैरल 2 डॉलर की औसत छूट खोने से लागत 0.6 डॉलर प्रति बैरल बढ़ेगी.
विविधीकरण का नया दौर: अवसर या चुनौती
पीडब्ल्यूसी के दीपक महुरकर ने कहा कि उपलब्धता समस्या नहीं, लेकिन वैश्विक कीमतें चिंता हैं. पिछले तीन सालों में भारत ने 40 देशों से स्रोत विविधीकृत किए हैं. ईवाई के गौरव मोडा का अनुमान है कि पारंपरिक आपूर्तिकर्ता अपनी हिस्सेदारी वापस लेने की कोशिश करेंगे, जो मध्यम अवधि में भारत को फायदा पहुंचा सकता है. हालांकि, तत्काल महंगाई का दबाव उपभोक्ताओं पर पड़ेगा.