नई दिल्ली: उन्नाव रेप केस की पीड़िता ने CBI की कथित देरी को लेकर अपनी आपत्ति जताई है. पीड़िता ने कहा कि ताकत मायने नहीं रखती. बलात्कारी बलात्कारी ही होता है, चाहे वह कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो. उन्होंने कहा कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं होना चाहिए और उन्हें उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय देरी पर ध्यान देगा और कड़े निर्देश जारी करेगा. पीड़िता ने कहा कि न्याय में देरी न्याय से इनकार के समान है और वे दोषियों को सजा मिलने तक संघर्ष जारी रखेंगी.
पीड़िता का यह बयान CBI द्वारा उन्नाव रेप मामले में दोषी कुलदीप सिंह सेंगर की सजा के निलंबन को चुनौती देने के फैसले के बाद आया है. उन्होंने सार्वजनिक रूप से एजेंसी के इस कदम के समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि पहले ही कड़ी कार्रवाई से न्याय की उनकी लड़ाई का रुख बदल सकता था.
पीड़िता ने आरोप लगाया कि CBI ने उनके मामले में पर्याप्त सहयोग नहीं दिया. शुरुआती सुनवाईयों में अक्सर CBI के वकील कोर्ट में उपस्थित नहीं होते थे. उन्होंने कहा कि अगर शुरुआती चरण में मजबूत कानूनी समर्थन मिलता, तो न्याय पाने की उनकी लड़ाई और असरदार होती.
पीड़िता ने स्पष्ट किया कि आरोपी का राजनीतिक प्रभाव मामले को प्रभावित नहीं कर सकता. पीड़िता ने कहा कि लंबित कानूनी प्रक्रिया ने उनके और उनके परिवार पर मानसिक दबाव डाला. हाल ही में CBI ने दोषी कुलदीप सिंह सेंगर की सजा को निलंबित किए जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. पीड़िता ने कहा कि एजेंसी का यह कदम बहुत देर से आया है. अगर प्रारंभिक चरण में कड़ी कार्रवाई होती, तो न्याय की प्रक्रिया अधिक प्रभावी हो सकती थी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर की अपील पर सुनवाई के दौरान उनकी उम्रकैद की सजा को निलंबित करते हुए सशर्त जमानत दी है. शर्तों में 15 लाख रुपये का निजी मुचलका, पीड़िता के घर से पांच किलोमीटर की दूरी बनाए रखना और किसी भी तरह का दबाव या धमकी न देना शामिल है. यह फैसला अपील के निपटारे तक लागू रहेगा.
पीड़िता और उसके परिवार ने जमानत के फैसले पर गहरी चिंता जताई है. पीड़िता की बहन ने कहा कि अगर यही हाल रहा तो 'हमें सुरक्षित रखने के लिए जेल में ही डाल दिया जाए.' परिवार का कहना है कि सेंगर की रिहाई उनके लिए डर और असुरक्षा का माहौल पैदा कर रही है. इस मामले ने एक बार फिर पीड़ितों की सुरक्षा और न्याय प्रणाली की संवेदनशीलता पर बहस छेड़ दी है.