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एक महीने में दूसरी बार... सुप्रीम कोर्ट ने 'बुलडोजर एक्शन' को अवैध बताया, कहा- संपत्ति का विध्वंस उचित नहीं

Supreme Court Over bulldozer Action: एक महीने में दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट ने किसी अपराध के आरोपियों के घर पर बुलडोजर एक्शन को गलत ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी पर किसी भी तरह के अपराध का आरोप उसकी संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं हो सकता. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ध्वस्तीकरण को 'देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने के रूप में देखा जा सकता है'.

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Edited By: India Daily Live
 Supreme Court over bulldozer justice
Courtesy: pinterest

Supreme Court Over bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट ने 'बुलडोजर एक्शन' प्रथा की निंदा की है, इसे अवैध घोषित किया है. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आपराधिक संलिप्तता संपत्ति के विध्वंस को उचित नहीं ठहराती है और मनमाने कार्यों को रोकने के लिए सुसंगत दिशा-निर्देशों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. ये निर्णय इस महीने की शुरुआत में उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों पर निशाना साधते हुए इसी तरह की आलोचना के बाद आया है.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सरकारी अधिकारियों की ओर से 'बुलडोजर एक्शन' में लिप्त होना 'देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने' के बराबर है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई कानून के खिलाफ है और कहा कि अपराध में शामिल होना संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं है. इस महीने ये दूसरी बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न अपराधों में आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को ध्वस्त करने पर कड़ी फटकार लगाई है.

2 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा था कि कानून दोषियों के मकान को नष्ट करने की अनुमति नहीं देता है. मनमाने ढंग से किए जाने वाले विध्वंस को रोकने के लिए सभी राज्यों की ओर से अनुपालन किए जाने वाले दिशा-निर्देश तैयार करने पर सहमति व्यक्त की थी.

उत्तर प्रदेश ने शुरू की थी 'बुलडोजर एक्शन' की प्रथा

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक उपाय के रूप में शुरू की गई इस प्रथा को राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों की ओर से अपनाया गया. गुरुवार को गुजरात के एक परिवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए, जिनके घर को नगर निगम के अधिकारियों ने बुलडोजर से गिराने की धमकी दी थी, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, सुधांशु धूलिया और एसवीएन भट्टी की पीठ ने इस प्रथा को दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया. कहा कि एक सदस्य की ओर से कथित रूप से किए गए अपराध के लिए पूरे परिवार को घर गिराकर दंडित नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने कहा कि अदालत इस तरह की विध्वंसकारी धमकियों से अनजान नहीं हो सकती, जो ऐसे देश में अकल्पनीय है जहां कानून सर्वोच्च है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्रवाइयों को देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने के रूप में देखा जा सकता है. अपराध में कथित संलिप्तता किसी संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं है. इसके अलावा, कथित अपराध को कानून की अदालत में उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से साबित किया जाना चाहिए.

गुजरात सरकार को जारी किया नोटिस, बुलडोजर एक्शन पर लगाई रोक

याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए पीठ ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया और नगर निगम को संपत्ति के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से रोक दिया. याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर वकील इकबाल सैयद ने पीठ के समक्ष संपत्ति का राजस्व रिकॉर्ड पेश किया, जिसमें दिखाया गया कि जिस घर में परिवार पिछले दो दशकों से रह रहा है, उसके निर्माण में कोई अवैधता नहीं थी. उन्होंने ग्राम पंचायत की ओर से 2004 में पारित प्रस्ताव का भी हवाला दिया, जिसमें आवासीय घर बनाने की अनुमति दी गई थी.

परिवार के एक सदस्य के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होने के बाद नगर निगम ने कथित तौर पर घर को ध्वस्त करने की धमकी दी थी. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि अपराध के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कानून को अपना काम करना चाहिए, लेकिन पूरे परिवार को दंडित नहीं किया जाना चाहिए.

शिकायतकर्ता की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि लेकिन नगर पालिका या नगर पालिका की छाया में रहने वाले अन्य लोगों के पास याचिकाकर्ता के वैध रूप से निर्मित और वैध रूप से कब्जे वाले घर/आवास को ध्वस्त करने के लिए धमकी देने या बुलडोजर का उपयोग करने जैसे कोई कदम उठाने का कोई कारण नहीं होना चाहिए. संक्षिप्त सुनवाई के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम राहत दी और सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की. इसमें कहा गया कि इस बीच, याचिकाकर्ता की संपत्ति के संबंध में सभी संबंधित पक्षों द्वारा यथास्थिति बनाए रखी जानी है.