Supreme Court: लोकसभा और विधानसभा में SC/ST आरक्षण बढ़ाने की संवैधानिकता का होगा परीक्षण
SC/ST Reservation: 104 वें संशोधन में लोकसभा व विधानमंडलों में SC/ ST आरक्षण 80 साल को लिए बढ़ाया गया है. सुप्रीम कोर्ट इस संविधान संशोधन का परीक्षण करेगी.

Supreme Court SC/ST Reservation: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) 2019 के 104वें संविधान संशोधन का परीक्षण करेगी. इसके लिए 5 जजों की संविधान पीठ भी गठित की जा रही है, जो 21 नवंबर से इस मामले को लेकर सुनवाई करेगी. कुछ महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के 104वें संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा व विधानसभाओं में जातिगत सदस्यों के लिए आरक्षण की अवधि बढ़ाए जाने पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था.
21 नवंबर को होगी सुनवाई
104 वें संशोधन में लोकसभा व विधानमंडलों में SC/ ST आरक्षण 80 साल को लिए बढ़ाया गया है. जबकि एंग्लो इंडियन आरक्षण खत्म किया गया. सुप्रीम कोर्ट ये भी देखेगा कि क्या अनुच्छेद 334 के तहत आरक्षण की निर्धारित अवधि को बढ़ाने का संशोधन संवैधानिक रूप से वैध है भी या नहीं. CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने कहा कि 21 नवंबर को मामले की सुनवाई होगी.
आरक्षण को बढ़ा दिया गया
बता दें कि 21 जनवरी, 2020 को संसद ने संविधान (104वां संशोधन) अधिनियम, 2019 पारित किया और एक बार फिर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को 80 साल तक बढ़ा दिया था. हालांकि, 104वें संशोधन ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन के लिए आरक्षण बंद कर दिया था. 24 अगस्त, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था.
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी याचिका
दरअसल, 10 जुलाई 2000 को अशोक कुमार जैन ने संविधान (79वां संशोधन) अधिनियम, 1999 (79वां संशोधन) की वैधता को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी. अशोक जैन ने तर्क दिया कि संशोधन ने उन्हें उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर दिया है, जो चुनाव में स्वतंत्र रूप से वोट डालने, किसे वोट देना है ये चुनने और चुनाव में खड़े होने का अधिकार है. इसके अलावा, उन्होंने ये भी तर्क दिया कि संशोधन ने अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन किया गया है. समानता में सरकार में समान प्रतिनिधित्व के अधिकार सहित सभी नागरिकों के लिए समान अवसर शामिल हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि सीमित आरक्षण का बार-बार विस्तार सभी के लिए समान प्रतिनिधित्व को कम करता है.
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