'बेटे ने मोड़ा मुंह', 'नहाने तक के लिए पत्नी पर डिपेंड', एयर इंडिया विमान हादसे में बचे इकलौते सर्वाइवर ने बयां किया दर्द

12 जून को गुजरात के अहमदाबाद से उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद एयर इंडिया की उड़ान AI171 जब दुर्घटनाग्रस्त हुई, तो 242 यात्रियों में से केवल एक व्यक्ति विश्वाशकुमार रमेश जिंदा बच गया था. उस हादसे में उनके अपने बड़े भाई अजयकुमार की मौत हो गई.

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Anubhaw Mani Tripathi

अहमदाबाद: 'जाको राखे साइयां, मार सकै न कोय. बाल न बांका कर सकै, जो जग वैरी होय..'  यह कहावत 12 जून को अहमदाबाद में सच साबित हुई और पूरे देश ने देखा था. तब एयर इंडिया की उड़ान संख्या AI171 अहमदाबाद, गुजरात से उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गई, तो विश्वाशकुमार रमेश उस पर सवार 242 यात्रियों में से एकमात्र जीवित बचे व्यक्ति थे. उनके अपने बड़े भाई, अजयकुमार, इस दुर्घटना में मारे गए. दुनिया ने इस चमत्कारी बचाव को ईश्वर की कृपा बताया था, लेकिन विश्वाशकुमार के लिए यह जीवन भर के लिए अभिशाप बन गया.

ब्रिटेन के लीसेस्टर शहर में रहने वाले विश्वाशकुमार आज भी उस भयावह दिन की यादों से उबर नहीं पाए हैं. उनकी शारीरिक पीड़ा के साथ मानसिक आघात इतना गहरा है कि वे अब घर से बाहर निकलना तक बंद कर चुके हैं.

'अब कुछ करने का मन नहीं करता'

स्काई न्यूज से बातचीत में विश्वाशकुमार ने कहा, “विमान की बात करना बहुत दर्दनाक है… मैं अब कुछ नहीं करता, बस कमरे में अकेला बैठा रहता हूं. हर वक्त भाई की याद आती है. मेरे लिए वो सबकुछ था.” इंटरव्यू के दौरान कई बार वे रुक गए, आंखों में आंसू भर आए और शब्दों के बजाय खामोशी छा गई. उनकी पत्नी और चार साल का बेटा दिवांग उनके साथ रहते हैं, लेकिन हादसे के बाद से पारिवारिक संबंध भी प्रभावित हुए हैं. उन्होंने कहा कि मैं अपने बेटे से ठीक से बात नहीं कर पाता, वो मेरे कमरे में भी नहीं आता. शायद उसे भी डर लगता है.

“पत्नी को नहाने में मदद करनी पड़ती है”

विश्वाशकुमार ने बताया कि हादसे में उन्हें गंभीर चोटें आई थीं. उनके घुटनों, कंधों और पीठ में लगातार दर्द बना रहता है, जबकि बाएं हाथ पर जलने के निशान आज भी हैं. कई बार मैं खुद से नहा भी नहीं पाता. पत्नी को मदद करनी पड़ती है. डॉक्टरों के अनुसार, शारीरिक चोटों से ज्यादा गंभीर उनकी मानसिक स्थिति है. पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) के लक्षण उन पर साफ दिखते हैं.

हादसे के बाद टूटा कारोबार

विश्वाशकुमार और उनके भाई अजयकुमार दोनों ने अपनी सारी बचत मिलाकर भारत में एक फिशिंग (मछली पालन) कारोबार शुरू किया था. काम बढ़िया चल रहा था और दोनों अक्सर भारत आते-जाते रहते थे. लेकिन इस हादसे ने न सिर्फ उनका परिवार तोड़ा, बल्कि उनका व्यवसाय भी ठप कर दिया.

लीसेस्टर समुदाय के नेता संजीव पटेल के अनुसार, “उनका पूरा परिवार अब आर्थिक संकट में है. भारत और ब्रिटेन दोनों जगह की आय रुक गई है. उन्हें अपनी ज़िंदगी दोबारा शुरू करने के लिए व्यावहारिक मदद की ज़रूरत है.”

'₹21 लाख का मुआवजा काफी नहीं’

हादसे के बाद एयर इंडिया ने विश्वाशकुमार को 21,500 पाउंड (लगभग ₹21.9 लाख) का अंतरिम मुआवजा दिया है. हालांकि, उनके सलाहकार और प्रवक्ता रैड सीगर का कहना है कि यह रकम “काफी नहीं है”.

सीगर ने कहा कि यह रकम तो सिर्फ शुरुआत है. विश्वाशकुमार को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से दोबारा खड़ा होने में बड़ी सहायता की जरूरत है जैसे बेटे को स्कूल ले जाने में मदद, नियमित थेरेपी, दवाएं और भोजन की व्यवस्था.

उन्होंने यह भी अपील की कि एयर इंडिया के सीईओ कैंपबेल विल्सन स्वयं विश्वाशकुमार और अन्य पीड़ित परिवारों से मिलें, ताकि उनकी वास्तविक जरूरतों को समझा जा सके. “यह सिर्फ पैसे का मामला नहीं है, यह इंसानियत का सवाल है,” सीगर ने कहा.

एयर इंडिया का जवाब: ‘हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं’

टाटा समूह के स्वामित्व वाली एयर इंडिया ने कहा कि वे हादसे से प्रभावित परिवारों की मदद के लिए प्रतिबद्ध हैं. एयर इंडिया के प्रवक्ता ने बयान में कहा, “हम श्री रमेश और अन्य पीड़ित परिवारों की स्थिति से गहराई से अवगत हैं. हमारी प्राथमिकता है कि उन्हें हर संभव सहायता दी जाए. टाटा समूह के वरिष्ठ प्रतिनिधि लगातार परिवारों से मिल रहे हैं और संवेदना व्यक्त कर रहे हैं. श्री रमेश के प्रतिनिधियों को भी इस संबंध में मुलाकात का प्रस्ताव दिया गया है.”

हालांकि, विश्वाशकुमार के परिजन मानते हैं कि जब तक कंपनी सीधे संवाद नहीं करती और दीर्घकालिक पुनर्वास योजना नहीं बनाती, तब तक स्थिति में कोई वास्तविक सुधार नहीं होगा.

‘हादसे के दिन सब खत्म हो गया’

12 जून की सुबह एयर इंडिया की बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर फ्लाइट AI171 अहमदाबाद से ब्रिटेन के गैटविक के लिए रवाना हुई थी. उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद विमान में तकनीकी खराबी आई और वह पास की एक मेडिकल हॉस्टल बिल्डिंग से टकरा गया. हादसे में विमान में सवार 242 में से 241 यात्रियों की मौत हो गई, जबकि 19 लोग ज़मीन पर भी मारे गए. मलबे से बाहर निकलने में केवल विश्वाशकुमार को सफलता मिली.

इस हादसे के बाद अस्पताल में भर्ती विश्वाशकुमार ने डीडी इंडिया को बताया कि जब वह उठे तो उनके आस-पास लाशें पड़ी थीं. उन्होंने कहा कि मैं अपने भाई को ढूँढ़ रहा था, लेकिन वह कहीं नहीं मिला. जो लोग उन्हें "भाग्यशाली" कहते हैं, वे शायद यह नहीं जानते कि जिंदा रहना ही उनके लिए सबसे बड़ा बोझ बन गया है. आज भी, उस पल को याद करके वह सिहर उठते हैं. "मैं भाग्यशाली नहीं हूँ, मैंने सब कुछ खो दिया है." उनका परिवार, उनका काम, उनका आत्मविश्वास, सब कुछ उस जलते हुए विमान के साथ राख हो गया. और आज, विश्वाशकुमार रमेश का जीवन उन राख से कुछ नया बनाने की जद्दोजहद है.