नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र और राज्य सरकारों को तीखी चेतावनी देते हुए कहा कि उसके 2020 के आदेश के बावजूद देशभर के पुलिस स्टेशनों में CCTV कैमरे न लग पाना बेहद गंभीर लापरवाही है.
भावी CJI जस्टिस विक्रम नाथ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा कि ऐसा लगता है जैसे केंद्र सुप्रीम कोर्ट को हल्के में ले रहा है. अदालत ने यह भी माना कि हिरासत में हिंसा और मौतें भारतीय न्याय प्रणाली पर एक गहरा धब्बा हैं, जिसे देश अब किसी भी हाल में स्वीकार नहीं करेगा.
सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि केंद्र ने न तो अदालत के आदेश का पालन किया और न ही अनुपालन हलफनामा दाखिल किया, जो बेहद गंभीर मामला है. अदालत ने सवाल उठाया कि जब CCTV लगाने का आदेश चार साल पहले दिया जा चुका है, तो अब तक पुलिस थानों में कैमरे क्यों नहीं लगाए गए? जस्टिस नाथ ने कहा कि अदालत को हल्के में लेना स्वीकार्य नहीं है और अब इस मामले को टाला नहीं जा सकता.
अदालत ने कहा कि हिरासत में होने वाली मौतें किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा धब्बा हैं. राजस्थान में आठ महीनों में 11 मौतों का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसी घटनाओं को 'देश अब बर्दाश्त नहीं करेगा.' अदालत ने स्पष्ट किया कि CCTV की अनुपस्थिति से न केवल पारदर्शिता प्रभावित होती है, बल्कि मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन भी होता है. पीठ ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है.
सुनवाई में बताया गया कि केवल 11 राज्यों ने ही अनुपालन हलफनामे दाखिल किए हैं, जबकि बाकी राज्यों ने कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी. अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि इससे साफ पता चलता है कि आदेश को गंभीरता से नहीं लिया गया. मध्यप्रदेश के मॉडल की तारीफ करते हुए अदालत ने कहा कि राज्य के सभी थाने जिला कंट्रोल रूम से जुड़े हैं, जो अन्य राज्यों के लिए उदाहरण बन सकता है. अदालत ने बाकी राज्यों से भी इसी स्तर की तत्परता दिखाने की अपेक्षा की.
पीठ ने पाया कि केंद्रीय एजेंसियों में से केवल कुछ ने ही CCTV कैमरे लगाए हैं, जबकि अन्य एजेंसियां अभी भी आदेश का पालन नहीं कर रही हैं. अदालत ने कहा कि CBI, ED और NIA जैसे संस्थान जांच के कारण CCTV की आवश्यकता से और भी ज्यादा जुड़े हैं. अदालत ने इस तर्क को भी खारिज किया कि CCTV जांच में बाधा डाल सकता है. न्यायमूर्ति नाथ ने कहा कि अमेरिका जैसे देशों में लाइव स्ट्रीमिंग तक होती है, इसलिए भारत में पारदर्शिता बढ़ाना किसी भी तरह से असंभव नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ निर्देश दिया कि जो राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अब तक हलफनामा दाखिल नहीं कर पाए हैं, वे तीन सप्ताह के भीतर जरूरी दस्तावेज जमा करें. अदालत ने यह भी कहा कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो संबंधित राज्यों के गृह विभाग के प्रमुख सचिव व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर देरी का कारण बताएंगे. अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी, जिसमें अदालत इस मामले पर आगे की कार्रवाई तय करेगी.